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________________ पउअकव्वमाहत्त] भाग ३ : सङ्कलन [१७४ ६. गाहाण रशा महिलाण विब्भमा कइयणाण उल्लावा । कस्स न हरंति हिययं बालाण य मम्मणुल्लावा ॥ १३ ॥ ७. गाहाणं गीयाणं तंतीसद्दाणं पोढमहिलाणं । ताणं चिय सो दंडो जे ताण रसं न याति ॥ २१॥ पाइयकवम्मि रसो जो जायइ तह य छेयभणिएहि । उययस्य य वासियसीयलस्स तित्ति न वच्चामो ॥२०॥ ललिए महरक्खरए जुवईयणवल्लहे ससिंगारे । संते पाइयकव्वे को सक्कइ सक्कयं पढिउं ॥ २९ ॥ ६. गाथानां रसा महिलानां विभ्रमा कविजनानामुल्लापाः । कस्य न हरन्ति हृदयं बालानां मन्मनुल्लापाः ।। ७. गाथानां गीतानां तन्त्रीशब्दानां प्रौढमहिलानाम् । तासामेव सो दण्डो ये तेषां रसं न जानन्ति । ८. प्राकृतकाव्ये रसो यो जायते तथा च छकभणितैः । उदकस्य च वासितशीतलस्य तृप्ति न व्रजामः ।। ललिते मधुराक्षरके युवतिजनवल्लभे सशृङ्गारे । सति प्राकृतकाव्ये कः शक्नोति संस्कृतं पठितुम् ॥ ६. प्राकृत-गाथाओं के रस, स्त्रियों के हावभाव, कवियों के काव्य-वचन तथा बालकों के अव्यक्त वचन किसके हृदय को आकर्षित नहीं करते हैं ? अर्थात् सभी के लिए अच्छे लगते हैं। ७. प्राकृत-गाथायें, गीत, तन्त्री के शब्द तथा प्रौढ महिलायें ये उनके लिए दण्ड स्वरूप हैं जो उनके रस को नहीं जानते हैं। ८. प्राकृत-काव्य में तथा विदग्ध (चतुर ) पुरुषों के वचनों में जो रस होता है उससे तृप्ति नहीं होती है, जैसे सुवासित और शीतल जल से मन तृप्त नहीं होता है। ९. ललित ( सुन्दर ), मधुराक्षरों से युक्त, युवतियों को प्रिय तथा शृङ्गार रस से परिपूर्ण प्राकृत-काव्य के मौजूद रहने पर कौन संस्कृत पढ़ने का प्रयत्न करेगा? अर्थात् कोई नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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