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प्राकृत-दीपिका
[ चतुर्दश अध्याय
(९) ये आदेश नहीं होते है-ट >ड; ठ>ढ; ह >घ; र >ल= । जैसेभट: >भटो, मठः >मठो, दाहः >दाहो, गरुडः >गरुडो।
(१०) आदेश होते हैं.- तेन >नेन, अनया >नार, इव > पिव, यादृशः> यातिसो, तादृशः >तातिसो, कीदृशः >केतिसो, अस्मादृशः >अम्हातिसो, हृदयकम् >हितपक , युष्मादृशः >युम्हातिसो, भवादश: भवातिसो ।
(११) क्त्म>तून ( कहीं कहीं 'त्थून' और 'खून' ) -पठित्वा >पठितून, नष्ट्वा > नत्थून नद्धन, दृष्ट्वा >तद्धन तत्थून ।
(१२) शौरसेनी के ज्ज >च्च में बदल जाते हैं। जैसे--कार्यम् >कज्ज >कच्चं ।
(१३) भविष्यत काल में एय्य । जैसे-भविष्यति हुवेय्य ।
(१४) भाव और कर्म में ईअ, इज्ज >इय्य । जैसे- गीयते >गिय्यते, रम्यते >रमिय्यते, हस्यते >हसिय्यते, पठ्यते >पठिय्यते ।
(१५) अकारान्त धातुओं में वर्तमान काल के 'इ ए' प्रत्यय के स्थान पर 'ति ते' होते हैं, अन्यत्र 'ति' होता है । जैसे - भवति >भवइ >भोति, नयति > इ>णेति, ददाति >दाइ>तेति, गच्छति > गच्छइ गच्छति, गच्छते, रमते >रमइ> रमते रमति ।।
(१६) पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में अकारान्त शब्दों से आतो ( डातो) और आतु (डातु ) प्रत्ययों का आदेश होता है। जैसे-दूरात् >तूरातो तूरातु, त्वत् >तुमातो तुमातु, मत >ममातो ममातु । विभक्ति-चिन्ह
अकारान्त 'वीर' शब्द के रूप एकवचन बहुवचन ।
एकवचन बहुवचन ओ आ प्र० वीरो
वीरा अनुस्वार - ए, आ. द्वि० वीरं
वीरे, वीरा एन, एनं हिं, हि
वीरेन, वीरेनं वीरेहि, वीरेहि स्स .. न, नं च०, ष. वीरस्स वीरान, वीरानं तो, तु तो, हितो, पं० वीरातो, वीरातु वीरातो,-हितो, सुतो
__ •सुतो अंसि, म्मि सु; सु स. वीरंसि, वीरम्मिः वीरेसु, वीरेसु
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