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________________ प्रत्ययान्त धातुयें ] भाग १ : व्याकरण [११३ बुहक्ख (भुज) के प्र० पु० एकवचन के रूप-- वर्तमान भूत भविष्यत् विधि + आज्ञार्थ क्रियातिपत्ति बुहुक्खइ बुहु क्खीअ बुहुविखहिइ बुहुक्खउ बुहुक्खेज (४) यडन्त (समभिहारार्थक) क्रियायें क्रिया का समभिहार (बार बार होना या अधिक होना) प्रकट करने के लिए संस्कृत में व्यञ्जन से प्रारम्भ होने वाली एकाच् धातु में यङ (य) प्रत्यय जोड़ा जाता है। प्राकृत में यङन्त क्रियायें वर्ण विकार के द्वारा बनाई जाती हैं । जैसे—पेवीअइ (पेपीयते-बार बार या अधिक पीता है)। जाजाअइ (नाजायते बार बार या अधिक पैदा होता है)। लालप्पइ (लालप्यते बार बार या अधिक बोलता है। (५) यलुगन्त (समभि हारार्थक) क्रियायें जब समभिहारार्थक 'यङ' का लोप हो जाता है तो उसे यङ लुगन्त कहते हैं। इससे भी बार-बार या अतिशय का बोध होता है। इसका प्रयोग वैदिक संस्कृत में मिलता है । प्राकृत में इसे भी वर्णविकार के द्वारा प्रकट किया जाता है। जैसे--चंकमइ (चङ कमीति-बार-बार चङ्क्रमण करता है)। (६) नामधातुयें संज्ञादि सुबन्त (नाम) को जब प्रत्यय जोड़कर धातु बनाया जाता है तो उसे नामधातु कहते हैं । प्राकृत में एतदर्थ 'आअ' (आय) प्रत्यय विकल्प से (अन्यत्र 'अ') जोड़ा जाता है। वर्ण विकार के द्वारा भी नामधातुयें बनती हैं। संस्कृत में क्यच, काम्यच आदि सात प्रत्यय जोड़े जाते हैं। नामधातुओं का प्रयोग इच्छा, आचार आदि अनेक अर्थों में होता है । जैसे (क) इच्छार्थ-धण-आअ+इ=धणाअइ, धणाइ (धनायति धन की इच्छा करता है)। गव्वाअइ, गव्वाई (गव्यति-गाय की इच्छा करता है)। पुत्तीअई, पुत्तीइ (पुत्रीयतीपुत्र की इच्छा करता है) । वाआअइ, वाआइ (वाच्यति बात करने की इच्छा करता है)। असनाअइ, असनाइ ( अशनायति-खाने की इच्छा०) । खीराअइ, खीराइ (क्षीरस्यति=ध की इच्छा०) । पुत्तकामाअइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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