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________________ धातुरूप ] [ १०५ १३. अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य स्वरान्त धातुओं में विकल्प से 'अ' विकरण जुड़ने के पश्चात् विभक्ति-चिह्न जोड़े जाते हैं जिससे वहाँ दो-दो रूप बनते हैं । जैसे—ध्ये > झा+अ = झाअ +इ 'झाअइ ( झा+इ = झाइ ), पाअ +इ = पाअइ ( पा+इ = पाइ ) । पा+अ - प्र० पु० म० पु० उ० पु० १४. कुछ धातुओं के अन्त्य व्यञ्जन को द्वित्व होने से वहाँ कहीं-कहीं दोदो रूप बनते हैं । जैसे - चलइ चल्लइ (चलति ), निमीलइ, निमिल्लइ ( निमीलति | अन्यत्र - तुटटइ ( त्रुटति ), सक्कइ ( शक्नोति ), कुप्पइ ( कुप्यति ) । प्रत्यय चिह्न - - एकवचन इ, ए सि, से मि भाग १ : व्याकरण -- वर्तमानकाल Jain Education International बहुवचन न्ति, न्ते, इरे इत्था, मो, भूतकाल (क) अकारान्त ( संस्कृत में व्यञ्जनान्त ) धातुओं में सर्वत्र - ईअ (ख) अन्य ( आकारान्त, एकारान्त एवं ओकारान्त ) धातुओं में सर्वत्र - सी, ही, हीअ । ह मु, म १. धातुओं के अन्त में यदि 'अ' हो तो वर्तमानकाल के रूपों में 'अ' को विकल्प से 'ए' हो जाता है । जैसे—हसह हसेइ, हससि हसेसि, हसउ होउ आदि । २. 'मि' के पूर्ववर्ती 'अ' का 'आ' विकल्प से होता है । जैसे—हसमि, हामि । ३. 'मो, मु, म' के पूर्ववर्ती 'अ' को 'इ' और 'आ' विकल्प से होते हैं, कहीं-कहीं 'ए' भी हो जाता है। जैसे—हसमो हसिमो हसामो हसेमो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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