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देवाउ,
ष०
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प्राकृत-दीपिका [एकादश अध्याय पुरिसेण,- णं पुरिसेहि, हिं,-हिं तृ. देवेण, -णं देवेहि,-हि-हि पुरिसस्स, पुरिसाय पुरिसाण,-णं च० देवस्स, देवाय देवाण, णं पुरिसत्तो, पुरिसाओ पुरिसाहितो, सुतो पं० देवत्तो, देवाओ, देवाहितो, सुतो, पुरिसेहितो,-सुतो देवाहितो,देवाहि, देवत्तो, देवाहि
देवाओ, देवाउ, देवेहि, देवेहितो,
देवे, सुतो पुरिसस्स पुरिसाण,-णं
देवस्स
देवाण,-णं पुरिसे, पुरिसम्मि पुरिसेसु,-सु स० देवे, देवम्मि देवेसु,-सु पुरिस पूरिसा
सं० देव, देवा, देवो देवा १. (क) इसी प्रकार अन्य अकारान्त पुं० संज्ञाओं के रूप बनेंगे-रुख (पेड़), तंडुल (चावल), णे उर (नूपुर), वीर, जिग (जिन), वच्छ (वृक्ष), धम्म (धर्म), मठ, कोस (खजाना), अवमाण (अपमान), आयार (आचार), उवएस (उपदेश), पाढ (पाठ), लेह (लेख), तव (तप), हरिस (हर्ष), फास (स्पर्श), खय (क्षय), नत्तम ( नर्तक ), गायब ( गायक ), सेवा ( सेवक ), रक्खअ ( रक्षक ), किस किसाण ( कृषक ), कोह कोव ( क्रोध ), चन्द ( चन्द्र ), हट्ट (बाजार), तिल, गम्भ (गर्भ), सूरिअ (सूर्य), देह, परिंद नरिंद (नरेन्द्र), गिहत्थ (गृहस्थ), आहार (भोजन), पाचअ (पाचक रसोइया), कण्ण (कर्ण), सावअ सावग (श्रावक), कर, हत्थ (हस्त), लोह (लोभ); पाडल (पाटलगुलाब), पुत्त (पुत्र), दीवा (दीपक), घड (घट), पड (पट), कसिण (कृष्ण), गाम (गाँव), थण (स्तन), वम्मह (मन्मथ), लोअ (लोक), वणिअ (वणिक् बनिया) णिरय निरय (नरक), सायर (सागर-समुद्र), बहिर (बहिरा), भिच्च (भृत्य= नौकर); कुलाअ, नीड (घोंसला), कूव (कुआ), निव, नरिंद (राजा); सुज्ज आइच्च (आदित्य - सूर्य); बंभण माहण (ब्राह्मण), नाय (न्याय), कणय ( कनक = सोना ), गोव ( गोप-ग्वाला), महियाल ( महिपाल ), मणोरह ( मनोरथ ), दंड ( दण्ड=लाठी.), उट्ठ ( उष्ट्र - ऊँट ), परिणअ ( विवाह ), षिणेसर (जिनेश्वर), बंसा (बांसुरी), समिय (श्रमिक), मिग मञ (मृग), मोक्ख
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