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________________ ७८ ] प्राकृत-दीपिका [ दशम अध्याय पक्खो अथवा कण्हो य सो पक्खो कण्हपक्खो (कृष्णपक्षः), रत्तो घडो या रत्तो अ ऐपो घडो रत्तघडो (रक्तघटः), सुन्दरा पडिमा या सुन्दरा य एसा पडिमा सुन्दरपडिमा ( सुन्दरप्रतिमा ), महतो रायो या महंतो य सो रायो=महारायो (महाराजः), महंतो सो वीरो-महावीरो (महावीरः)। (ख ) विशेषणोभयपद (विशेषण + विशेषण )-सी च तं उण्हं यसीउण्हं जलं ( शीतोष्णं जलम् ), रत्तं अ तं पीअं य+रत्तपीअं वत्थं (रक्तपीतं वस्त्रम् )। (ग) उपमान-पूर्वपद ( उपमान + साधारण धर्म )-घणो इव सामो घणसामो ( धनश्यामः मेघ के समान श्याम वर्ण ), मिओ इव चवला - मिअचवला ( मृगचपला-मृग के समान चञ्चल )। (ब) उपमेयोत्तरपद ( उपमान+उपमेय )-चन्दो इव आणणं चंदाणणं ( चन्द्राननम् - चन्द्रमा के समान मुख ), वज्जो इव देहो-वज्जदेहो (वजदेहः), चंदो इव मुहं - चन्दमुहं ( चन्द्रमुखम् )। ( 5 ) उपमानोत्तरपद (उपमेय+उपमान )-मुहं चदो ब्व - मुहचंदो (मुख चन्द्रः-मुख चन्द्रमा के समान है ), पुरिसो वग्घो व्व पुरिसवग्यो (पुरुषव्याघ्रः= पुरुष व्याघ्र के समान है ) अथवा पुरिसो एव्व वग्घो पुरिसवग्यो (पुरुषव्याघ्र:= पुरुष ही व्याघ्र है। यहां रूपक अलंकार प्रयुक्त समास है ), संजमो एव धणं संजमधणं ( संयमधनम्-संयम रूपी धन )। (४) दिगु (द्वियु) समास जब कर्मधारय समास में पूर्वपद संख्या हो और उत्तरपद संज्ञा हो तब वहाँ दिगु समास होता है। जैसे-तिण्हं लोआणं समूहो तिलोयं तिलोई वा (त्रिलोकी - तीनों लोक), नवण्हं तत्ताणं समूहो ( समाहारो) नवतत्तं ( नवतत्त्वम् ); च उण्हं कसायाणं समूहो- चउकसायं ( चतुष्कषायम् ), तिण्हं वियप्पाणं समाहारो = तिवियप्पो (त्रिविकल्पम् ), तिण्णि लोया तिलोया (त्रिलोकाः ), पउरो दिसाओ-चउदिशा (चतुर्दिशः ), तिभवा ( त्रिभवाः )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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