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________________ [ xviii ] यहाँ यह उल्लेख करना अप्रासङ्गिक नहीं होगा कि न्यायावतार को सिद्धसेन की रचना मानने के प्रश्न पर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। जैन विद्या के शीर्षस्थ विद्वान् प्रो० मधुसूदन ढाकी इसे सिद्धसेन दिवाकर की कृति नहीं मानते हैं। अष्टकप्रकरण में क्रमाङ्क १७ से २० प्रकरणों में 'मांसभक्षण, मद्यपान और मैथुन में दोष नहीं है' - वैदिक मतावलम्बियों के इस मत का निराकरण किया गया है। मांस-भक्षण के सम्बन्ध में उक्त मत का निराकरण करने के क्रम में हरिभद्र ने पहले मनुस्मृति के इस श्लोक को प्रस्तुत किया है - न मांस भक्षणे दोषः न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला ।। १८/२ ।। तत्पश्चात् मनुस्मृति ३ में ही उपलब्ध श्लोकों के आधार पर उनकी इन मान्यताओं का निराकरण किया है। हरिभद्र ने स्मृति के श्लोकों को उद्धृत कर यह दर्शाया है कि उनका मत युक्तिसङ्गत नहीं है, क्योंकि स्मृति में भी इस सम्बन्ध में परस्पर विरोधी उल्लेख उपलब्ध हैं। हरिभद्र द्वारा उद्धृत श्लोक निम्नलिखित हैं - मां स भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाम्यहम् । एतन्मासस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः ।। १८/३ ।। प्रोक्षितं भक्षयेन्मांसं ब्राह्मणानां च काम्यया । यथाविधि नियुक्तस्तु प्राणानामेव वाऽत्यये ।। १८/५ ।। उपरोक्त दोनों श्लोकों में से एक में स्मतिकार ने मांस-भक्षण करने वालों को स्पष्ट चेतावनी दी है कि ऐसा करने वालों का मांस, दूसरे जन्म में वे जीव खायेंगे जिनका मांस उन्होंने इस जन्म में खाया है। इसके विपरीत स्वयं स्मृतिकार ही उसी अध्याय में मांस-भक्षण से अस्वीकार करने का फल निरन्तर इक्कीस जन्मों तक पशु-योनि में जन्म लेना बताते हैं। अष्टकप्रकरण१४ ( १८/७ ) में स्मृति से उद्धृत उक्त श्लोक निम्नलिखित है - यथाविधि नियुक्तस्तु यो मांसं नात्ति वै द्विजः । स प्रेत्य पशुतां याति सम्भवानेकविंशतिम् ।। इस तरह मांस-भक्षण से अस्वीकार करने पर निरन्तर पश रूप में उत्पन्न होने का भयङ्कर फल 'निवृत्तिस्तु महाफला' को अप्रासङ्गिक बना देता है । निवृत्ति, अर्थात् मांस-भक्षण आदि के त्याग का भयावह परिणाम लोगों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001665
Book TitleAshtakprakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, worship, & Principle
File Size8 MB
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