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________________ [ xix ] को मांस-भक्षण की प्रवृत्ति की ओर उन्मुख करेगा। ____ हरिभद्र ने 'न मांसभक्षणे दोषः' में अन्तर्निहित विरोधों को सामने लाने के लिए 'निवृत्तिस्तुमहाफला' अर्थात् मांस-भक्षण से निवृत्ति महाफल वाली है - इस पद का खण्डन किया। निवृत्ति से अभिप्राय है पूर्व में प्रवृत्त कर्म से विरत होना। परन्तु जैन श्रमण, जिनके लिए मांसाहार पहले से ही पूर्णतया निषिद्ध है, उनके प्रसङ्ग में मांस-भक्षण से निवृत्ति घटित न होने से वे महाफल से वञ्चित रह जायेगें, इस स्थिति में यह उक्ति 'निवृत्तिस्तुमहाफला' युक्तिसङ्गत नहीं है। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त श्लोक 'यथाविधि' ( १८/७) के पूर्वार्द्ध का पाठ मनुस्मृति५ के पाठ से भिन्न है जो इस प्रकार है - नियुक्तस्तु यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः ।। ५/३५ ।। 'न मांसभक्षणे दोषः' का खण्डन करने के लिए हरिभद्र ने बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ लङ्कावतारसूत्र'६ अपर नाम सद्धर्मलङ्कावतारसूत्र को भी उद्धृत किया है – शास्त्रे चाप्तेन वोऽप्येतन्निषिद्धं यत्नतो ननु । लङ्कावतारसूत्रादौ ततोऽनेन न किञ्चन् ।। १७/८ ।। इसमें भगवान् बुद्ध ने मांसाहार का निषेध इस प्रकार किया है - मद्यं मांसं पलाण्डु न भक्षयेयं महामुने । बोधिसत्त्वैर्महासत्त्वैर्भाषद्भिर्जिनपुङ्गवैः ।। १/८ मांसभक्षण परावर्त उपरोक्त उद्धरणों के आलोक में यह स्पष्ट हो जाता है कि हरिभद्र ने वैदिक ग्रन्थों के आधार पर ही 'न मांसभक्षणे दोषः' इस उक्ति में अन्तर्निहित विरोधों को सफलता से रेखाङ्कित किया है। 'न मांसभक्षणे दोषः' का खण्डन करने के पश्चात् 'न च मैथुने' अर्थात् 'मैथुन में दोष नहीं है' का निराकरण करने के लिए हरिभद्र ने जैन अङ्ग आगम भगवती१७ में प्राप्त दृष्टान्त को उद्धृत किया है। अष्टकप्रकरण१८ में उक्त दृष्टान्त का सङ्केत निम्न रूप से है - प्राणिनां बाधकं चैतच्छास्त्रे गीतं महर्षिभिः । नलिका तप्तकणक प्रवेश ज्ञाततस्तथा ।। हरिभद्र द्वारा उद्धृत भगवती का वह दृष्टान्त इस प्रकार है - केई पुरिसे रुयनालियं वा बरनालियं वा तत्तेण कणएणं समभिद्धसेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001665
Book TitleAshtakprakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, worship, & Principle
File Size8 MB
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