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________________ प्रस्तावना वादीभासिंह यह उपाधि शिलालेखों में कई आचार्यों को दी गई है अतः प्रस्तुत ग्रन्थकर्ता का समय और व्यक्तित्व निश्चित करना कठिन है। इस के दार्शनिक उल्लेखों आदि को देख कर संपादक पं. दरबारीलाल ने आठवीं सदी के अन्त या नौवीं सदी के प्रारम्भ में उन का समय माना है। गद्यचिन्तामणि तथा क्षत्रचूडामणि ये दो काव्यग्रन्य चादीमसिंह नामक आचार्य के हैं तथा गद्यचिन्तामणि के प्रारम्भ में उन्हों ने पुष्पसेन को गुरु माना है । श्रवणबेलगोल के एक लेख के अनुसार पुष्पसेन अकलंक के गुरुबन्धु थे' अतः उन का समय भी आठवीं सदी के अन्त में या नौवीं सदी के प्रारम्भ में प्रतीत होता है। यदि यही आचार्य स्यावाद सिद्धि के कर्ता हों तो वादिराज तथा जिनसेन द्वार प्रशंसित वादिसिंह से वे अभिन हो सकते हैं। वादिराज ने 'दिग्नाग तथा धर्मकीर्ति के मान को भग्न करनेवाले' ऐसा दादिसिंह का वर्णन किया है ( पार्श्वचरित सर्ग १) स्यादवादगिरमाश्रिय वादिसिंहस्य जिते । दिनागस्य मदध्वंसे कीर्तिभंगो न दुर्घटः ।। .. जिनसेन ने वादिसिंहको कवि, वाग्मी तथा गमकों में श्रेष्ठ माना है - ( आदिपुराण १-५४ ) कवित्रस्य परा सी ग वाग्मिवस्य परं पदम् । गमकत्वस्य पर्य तो वादिसिंहोऽर्च्यते न कैः ।। जिनसेन से पूर्व होने के कारण वादिसिंह का समय नौवीं सदी के प्रारम्भ में या उस से कुछ पहले है। दूसरी ओर गद्यचिन्तामणि के कर्ता को ओडयदेव यह विशेषण दिया मिलता है और यही विशेषण-नाम बारहवीं सदी के आचार्य अजितसेन का भी था तथा उन्हें वादीमसिंह यह उपाधि भी दी जाती यी । अतः यदि वे स्यावाद सिद्धि के कर्ता हों तो उन का समय २) जैन शिलालेख संग्रह भा. १ १) जैन शिलालेख प्र. भा. १ पृ. १०५ पृ. १११. वि.त.प्र.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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