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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः बारहवीं सदी सुनिश्चित होगा । इन दो पक्षों में कौनसा अधिक योग्य है यह प्रश्न अनुसन्धानयोग्य है। २५. प्रभाचन्द्र-वीरसेन ने षटखण्डागमटीका धवला में प्रभाचन्द्र के किसी ग्रन्थ से नय का लक्षण उद्धृत किया है। वीरसेन से पूर्व होने से इन प्रभाचन्द्र का समय आठवीं सदी के अन्त में या उस से कुछ पहले का है। इसी समय के आसपास हरिवंशपुराण में कुमारसेन के शिष्य प्रभाचन्द्र का वर्णन इन शब्दों में मिलता है - आकूपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वलम् । गुरोः कुमारसेनस्य विचरत्यजितात्मकम् ।। महापुराण के प्रारंभ में (१-४७) चन्द्रोदय के कर्ता प्रभाचन्द्र का वर्णन इस प्रकार है - चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाल्हादितं जगत् ॥ इन प्रभाचन्द्र का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नही है। न्यायकमुदचन्द्र आदि के कर्ता प्रभाचन्द्र इन से कोई तीनसौ वर्ष बाद हुए हैं। चन्द्रोदय तथा न्यायकुमुदचन्द्र में नामसाम्य के कारण इन दोनों में एकता का भ्रम कुछ वर्ष पहले रूढ हुआ था। २६. कुमारनन्दि-इन के वादन्याय नामक ग्रन्थ का उल्लेख विद्यानन्द ने तीन ग्रन्थों में किया है। श्लोकवार्तिक (पृ. २८० ) में राजप्राग्निक - वादसभा के निर्णायक सदस्यों का स्वरूप कुमारनन्दि के अनुसार बताया है । प्रमाणपरीक्षा में (पृ. ७२ ) हेतु के एकमात्र लक्षण का अनुमान के प्रयोग के साथ सामंजस्य बतलाते हुए कमारनन्दि का मत १) अष्टसहस्रीटिप्पण में समन्तभद्र (द्वितीय) ने वादीभसिंह की आप्तमीमांसा टीका का उल्लेख किया है ऐसा कुछ विद्वानों का मत है। किन्तु टिप्पण था वह अंश थान से पढने पर स्पष्ट होगा कि वहां टिप्पणकर्ताने अकलंकदेव को ही वादीभसिंह यह विशेषण दिया है। २) धरला भाग १ प्रस्तावना पृ. ६१. ३) इस भ्रम का निवारण न्यायकुमुन्दचन्द की प्रस्तावना में विस्तार से किया गया है। . ४) कुमारनन्दिनश्चाहुदन्यायविवक्षणाः । राजप्रानिकसामर्थ्यमेवम्भूतमसंशयम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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