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________________ ६४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [प्रकाशन-- सं. शेर्वाट्स्की , बिन्लाथिका बुद्धिका, सेंट पीटर्सबर्ग, १९०९] २३. सन्मति (सुमति)-वादिराज ने पार्श्वचरित में (१-२२) सन्मतिसूत्र के टीकाकार सन्म ति का उल्लेख इन शब्दों में किया है___नमः सन्मतये तस्मै भवकूपनिपातिनाम् । सन्मतिर्विवृता येन सुखधामप्रवेशिनी ॥ दिगम्बर परम्परा के सुमति नामक विद्वान के कुछ मतों का खण्डन बौद्ध आचार्य शान्तरक्षित ने तत्त्वसंग्रह ( का. १२६४) में किया है। ये सुमति उपर्युक्त सन्मति से अभिन्न प्रतीत होते हैं। सुमतिसप्तक नामक रचना के कर्ता सुमतिदेव का वर्णन मल्लिषेणप्रशस्ति में इन शब्दों में है (जैन शिलालेख संग्रह भा. १ पृ. १०३) सुमतिदेवममुं स्तुत येन वः सुमतिसप्तकमाप्ततया कृतम् । परिहतापथतत्तपथार्थिनां सुमतिकोटिविवर्ति भवार्तिहृत् ॥ सरत ताम्रपत्र में सन ८२१ में सुमति पूज्यपाद के शिष्य अपराजित गुरु को कुछ दान दिये जाने का वर्णन है। इस से सुमति का समय आठवीं सदी के उत्तरार्ध में प्रतीत होता है। इस दान पत्र में उन्हें सेनसंघ के आचार्य तथा मल्लवादी के शिष्य कहा है (एपिग्राफिया इन्डिका २१ पृ. १३३)। सुमति का कोई ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है। २४. वादीभसिंह-स्याबादसिद्धि यह वादीभसिंह की महत्त्व. पूर्ण रचना है। इस का उपलब्ध संस्करण अपूर्ण है तथा इस में १६ प्रकरण एवं कुल ६७० कारिकाएं हैं। जीव का स्वतन्त्र अस्तित्व, क्षणिकवाद-निरसन, सहानेकान्त, क्रमानेकान्त, नित्यवाद-खण्डन, ईश्वर का सर्वज्ञत्व, जगत का कर्तृत्व, सर्वज्ञ का अस्तित्व, अर्थापत्ति प्रमाण, वेद का पुरुषकृतत्व, प्रामाण्य की उत्पत्ति, अभाव प्रमाण, तर्कप्रमाण, गुण तथा गुणी का अभेद, ब्रह्मवाद निरसन तथा अपोहवाद निरसन ये विषय इस में चर्चित हैं। [प्रकाशन-सं. पं. दरबारीलाल, माणिकचन्द्र प्रन्यमाला, बम्बई, १९५०.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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