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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः 1 स्वरूप आदि की विस्तृत चर्चा है । दूसरे प्रस्ताव में अनुमान प्रमाण तथा उस के उपांग – हेतु व हेत्वाभास, वादविवाद का स्वरूप तथा जयपराजय की व्यवस्था का विचार किया है । तीसरे प्रस्ताव में जिनप्रवचन का स्वरूप, बौद्ध तथा मीमांसकों के शास्त्रों का अप्रमाणत्व, सत्शास्त्र के प्रवर्तक सर्वज्ञ आदि आगमविषयक चर्चा और प्रमाणविषयक शेष विचार हैं । इस ग्रन्थ पर वादिराज ने विवरण नामक विस्तृत टीका लिखी है । [ प्रकाशन- १ मूल - अकलंक ग्रन्थत्रय में - सं. पं. महेन्द्रकुमार, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई १९३९, २ न्यायविनिश्चय विवरण में - सं. पं. महेन्द्रकुमार, भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस, १९४९ ] सिद्धिविनिश्चय- इस ग्रन्थ में १२ प्रकरण तथा कुल ३८० श्लोक हैं । इस पर आचार्य की ही पूरक गद्य वृत्ति ५०० श्लोकों जितने विस्तार की है । इन १२ प्रकरणों में क्रमशः प्रत्यक्ष प्रमाण, सविकल्प प्रत्यक्ष, अन्य प्रमाण, जीव, जल्प, हेतु का लक्षण, शास्त्र का स्वरूप, सर्वज्ञ का अस्तित्व, शब्द का स्वरूप, अर्थनय, शब्दनय तथा निक्षेप इन विषयों का विस्तृत विचार है । विशेषतः बौद्ध और मीमांसको के एतद्विषयक मतों का आचार्यने विस्तार से निरसन किया है तथा अनेकान्तवाद का समर्थन किया है । इस ग्रन्थ पर अनन्तवीर्य की टीका विस्तृत है - उसी से मूल ग्रन्थ का पाठ उद्धृत किया गया है - मूल ग्रन्थ की प्रतियां प्राप्त नहीं होतीं । [प्रकाशन -- सिद्धिविनिश्चय टीका - सं. पं. महेन्द्रकुमार, भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस, १९५९ ] ५८ प्रमाण संग्रह- - इस ग्रन्थ में ९ प्रस्ताव तथा कुल ८७ कारिकाएं हैं । इन में क्रमश: प्रत्यक्ष प्रमाण, स्मृति आदि परोक्ष प्रमाण, अनुमान प्रमाण, हेतु का लक्षण तथा भेदोपभेद, हेत्वाभास का स्वरूप, बाद में जयपराजय की व्यवस्था, प्रवचन तथा उस के प्रवर्तक सर्वज्ञ का समर्थन, सप्तभंगी तथा नैगमादि नय एवं प्रमाण-नय---1 - निक्षेप का सम्बन्ध इन विषयों का विवेचन है । इस पर भी आचार्य ने एक पूरक वृत्ति गद्य में ७०० लोकों जितने विस्तार की लिखी है। दक्षिण के जैन शिलालेखों में बहुधा पाया जानेवाला श्लोक Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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