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________________ प्रस्तावना इस में संक्षिप्त विवरण दिया है। इसी पर विद्यानन्द ने अष्टसहस्री नामक विस्तृत टीका लिखी है। [प्रकाशन- सं. पं. गजाधरलाल, सनातन जैन ग्रन्थमाला, १९१४, बनारस] लघीयस्त्रय- यह प्रमाणप्रवेश, नयप्रवेश तथा प्रवचनप्रवेश नामक तीन छोटे प्रकरणों का संग्रह है अतः इसे लघीयस्त्रय यह नाम दिया गया है। इन प्रकरणों में क्रमश: ३०, २० व २८ श्लोक हैं। मूल श्लोकों के अर्थ के पूरक स्पष्टीकरण के रूप में आचार्य ने स्वयं इन प्रकरणों पर गद्य विवृति लिखी है । पहले प्रमाणप्रवेश के चार परिच्छेद हैं तथा इन में क्रमशः प्रत्यक्ष प्रमाण, प्रमाण का विषय, परोक्ष प्रमाण, आगम तथा प्रमाणाभास की चर्चा है । नय प्रवेश में द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक, शब्दनय व अर्थनय तथा नैगमादि सात नय इन का परस्पर सम्बध तथा विषय विस्तार स्पष्ट किया है। तीसरे प्रवचन प्रवेश में प्रमाण, नय तथा निक्षेप का सम्बन्ध स्पष्ट कर मोक्षमार्ग में उन की उपयोगिता बतलाई है। इस ग्रन्थ पर प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र नामक विस्तृत टीका लिखी है तथा इस के मल श्लोकों पर अभयचन्द्र की स्याद्वादभूषण नामक टीका है। [प्रकाशन-१ मूल तथा विवृति –अकलंक ग्रन्थत्रय में - सं. पं. महेन्द्रकुमार, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, १९३९, बम्बई; २ मूल श्लोक तथा अभयचन्द्र की टीका - सं. पं. कल्लाप्पा निटवे, माणिकचन्द्र अन्यमाला, १९१६, बम्बई; ३ मूल तथा विवृत्ति - न्यायकुमुदचन्द्र में - सं. पं. कैलाशचन्द्र तथा महेन्द्रकुमार; माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, १९३८, बम्बई.] न्यायविनिश्चय-इस ग्रन्थ के तीन प्रस्ताव हैं तथा कुल श्लोकसंख्या ४८० है । इस पर भी स्वयं आचार्य की मूल विषय के पूरक के रूप में गद्य विवृति थी किन्तु वह उपलब्ध नही है। इस के प्रथम प्रस्ताव में प्रत्यक्ष प्रमाण तथा उस के उपभेद, प्रत्यक्ष ज्ञान के विषय में विविध दर्शनों के मन्तव्य, तथा प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा जाने गये विषयों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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