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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः उन की द्वात्रिंशिकाओं की रचना शुरू हुई थी। उन के ग्रन्थों के टीकाकारों ने 'दुःषमाकाल रूपी रात्रि के लिए दिवाकर ( सूर्य) सदृश' ऐसी उन की प्रशंसा की है। इस से 'दिवाकर' यह उन का उपनाम रूढ हुआ है। द्वात्रिीशिकाएं, सन्मति तथा न्यायावतार ये तीन ग्रन्थ सिद्धसेन के नाम पर प्रसिद्ध हैं किन्तु इन में परस्पर काफी मतभेद पाया जाता है अतः हम तीनों का परिचय अलग अलग देते हैं और इस प्रकार स्वतन्त्र रूप से ही उन का विचार करना चाहिए । सन्मति-इसे सन्मतिसूत्र अथरा सन्मतितकं प्रकरण भी कहा जाता है । यह प्राकृत गाथाओं में है तथा इस के काण्डों में क्रमशः ५४, ४३ तथा ७० गाथाएं हैं । प्रथम काण्ड में तीर्थंकरों के वचन के ' मूलव्याकरणी' के रूप में द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक इन दो मूलनयों का वर्णन है । नैगम, संग्रह आदि सात नयों का तथा नाम, स्थापना आदि निक्षेपों का इन मल नयों से सम्बन्ध भी स्पष्ट किया है। विभिन्न नय अलग अलग हों तो बिखरे रत्नों के समान शोभाहीन होते हैं-रत्नावली के समान समन्वित हों तो शोभायुक्त हैं यह स्पष्ट करते हुए आचार्य ने बौद्ध, सांख्य और वैशेषिक दर्शनों की एकांगी विचारसरणी का उल्लेख किया है । इस काण्ड के अन्त में स्याद् अस्ति, स्यान्नास्ति आदि सात भंगों द्वारा जीव का वर्णन भी किया है। दूसरे काण्ड में जीव के प्रधान लक्षण – ज्ञान और दर्शन – का विस्तृत विवेचन है । विशेषतः केवलज्ञानी के ज्ञानदर्शन का वर्णन वैशिष्टयपूर्ण है। दिगम्बर परम्परा में केवली के ज्ञान व दर्शन प्रतिक्षण युगपद् उपयुक्त माने हैं तथा श्वेताम्बर परम्परा में इन का उपयोग क्रमश: माना है -- एक क्षण में ज्ञान का व दूसरे क्षण में दर्शन का इस १) इन तीन के अतिरिक्त विषोग्रग्रहशमन विधि तथा नीतिसार ये दो अनुपलब्ध ग्रन्थ भी हैं (अनेकान्त व. ९ पृ. ४२४) २) प्राकृत में 'सम्मइंसुत्त' यह रूप होता है। इस का संस्कृत रूपान्तर ' सम्मति' भी किया गया है जो उचित नही है। ३) उपान्त्य गाथा (जेण विणा भुवणस्स वि इत्यादि ) पर अभयदेव की टीका नहीं है, अतः पं. सुखलालजी उसे मूल ग्रन्थ की नही मानते । ऐसी दशा में कुल गाथासंख्या १६६ होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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