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________________ २६ विश्वतत्त्वप्रकाशः अपने ही कर्मों का फल भोगता है तथा वह अपने ही प्रयत्न द्वारा इन कर्मों से मुक्त हो सकता है यह उन का कथन था । ४. द्वादशांग श्रुत में तार्किक भाग-महावीर के उपदेशों का संकलन उन के प्रधान शिष्यों-गणधरों द्वारा बारह ग्रन्थों में किया । ये ग्रन्थ अंगसंज्ञा से प्रसिद्ध हैं सम्मिलित रूप से उन्हें द्वादशांग गणिपिटक कहा जाता है। ये ग्रन्थ मूल रूप में उपलब्ध नही हैं । तथापि उन का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में सुरक्षित है । इस से ज्ञात होता है कि इन बारह अंगों में दूसरा सूत्रकृत, पांचवां व्याख्याप्रज्ञप्ति, दसवां प्रश्नव्याकरण तथा बारहवां दृष्टिवाद ये अन्य विशेषरूप से तर्काश्रित थे। सूत्रकृत में ज्ञानविनयादि विषयों के साथ स्वसमय (जैन सिद्धान्त ) तथा परसमय (जैनेतर सिद्धान्त ) का वर्णन था। इस का विस्तार ३६००० पद था। व्याख्याप्रज्ञप्ति में २२८००० पद थे तथा जीव है अथवा नही है आदि ६०००० प्रश्नों का वर्णन था । प्रश्नव्याकरण में ९३१६००० पद थे तथा आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी इन चार प्रकार की कथाओं का वर्णन था । दृष्टिवाद में ३६३ मतवादियोंका निराकरण था। इस के पांच उपभेद थे-सूत्र, परिकर्म, प्रथमानुयोग, पूर्वगत तथा चूलिका। सूत्र में त्रैराशिक, निय तिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद, १) दिगम्बर परम्परा में गणधर गौतम तथा श्वेताम्बर परम्परा में गणधर सुधर्म स्वामी प्रमुख अंगग्रंथकर्ता माने गये हैं। २) वर्तमान समवायांग सू. १३६.५०; तत्त्वार्थवार्तिक १.२०, धवला टीका भा. १ पृ. ९९, हरिवंशपुराण सर्ग १० आदि । यहां दिया हुआ वर्णन मुख्यतः धवला टीका के अनुसार है। ३) समवायांग सू. १३७ के अनुसार इसी अंग में ३६३ मतवादियों का निराकरण समाविष्ट था। ४) समवायांग सू. १४० में इन प्रश्नों की संख्या ३६००० कही है। ५) छह द्रव्य, नवपदार्थ आदि का स्वरूप पहले बतला कर फिर अन्य मतों का निराकरण करना आक्षेपिणी कथा है । पहले दूसरों द्वारा जैन मत पर लिये गये आक्षेप बतला कर फिर उन्हें दूर करना यह विक्षेपिणी कथा है । पुण्य का फल बतलानेवाली कथा संवेदिनी तथा पाप का फल बतलानेवाली कथा निर्वेदिनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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