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________________ प्रस्तावना २७ पुरुषवाद आदि का वर्णन था । पूर्वगत के चौदह प्रकरण थे-इन में चौथा अस्तिनास्तिप्रवाद, पांचवां ज्ञानप्रवाद व सातवां आत्मप्रवाद, ये तीन पूर्व तार्किक विषयों से सम्बद्ध प्रतीत होते हैं। ५. आगम की परम्परा-गणधरों द्वारा संकलित अंग ग्रन्थ कोई एक सहस्र वर्षोंतक मौखिक परम्परा से ही प्रसृत होते रहे-उन्हें लिपिबद्ध रूप नही दिया गया। गुरुशिष्यपरम्परा से पठन पाठन होते समय इन ग्रन्थों के मूल रूप में कुछ परिवर्तन होना स्वाभाविक था। उन की भाषा पहले अर्धमागधी प्राकृत थी वह धीरे-धीरे महाराष्टी प्राकृत के निकट पहुंची । मल ग्रन्थों के कुछ विषयों का वर्णन लुप्त हुआ और कुछ नये विषयों का उन में समावेश हुआ। इस परिवर्तन से मल के अर्थ में विपर्यास न हो इस लिए समय समय पर साधुसंघ द्वारा उन के संकलन का प्रयास किया गया। महावीर के निर्वाण के बाद १७० वें वर्ष में पाटलिपुत्र (पटना) में स्थूलभद्र के नेतृत्व में ऐसा प्रयास प्रथमवार हुआ -इसे पाटलिपुत्र वाचना कहा जाता है । सन की दूसरी सदी में स्कन्दिल तथा नागार्जन ने ऐसेही प्रयास किए-इन्हें माथुरी वाचना कहा जाता है । अन्त में वीरनिर्वाण के ९८० वें वर्ष में देवर्षि गणी ने समस्त आगमों का संकलन कर उन्हें लिपिबद्ध किया । यह कार्य सौराष्ट्र की राजधानी चलभी नगर में सम्पन्न हुआ । दुर्भाग्यवश इस दीर्घ काल में जैनसंघ का दो सम्प्रदायों में विभाजन हुआ। दिगम्बर सम्प्रदाय में वलभी वाचना के आगम स्वीकृत नही हो सके । उस सम्प्रदाय के आचार्यों ने मल आगम के विषयों पर १) गोशाल मस्करिपुत्र के अनुयायी आजीवकों को त्रैराशिक कहते थेक्यों कि वे प्रत्येक तत्त्व का विचार तीन राशियों में करते थे, उदा० जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक । जगत की समस्त घटनाएं पूर्वनिश्चित-नियत हैं ऐसा मानते हैं। वे नियतिवादी है। जगत के सब तत्त्व ज्ञान के ही रूपान्तर हैं यह विज्ञानवाद का मत है । जगत का मूल कारण शब्द है यह शब्दवाद का मत है। 'जड जगत का मूलकारण प्रधान (प्रकृति) है यह ( सांख्यों का) प्रधानवाद है । सब द्रत्र्य नित्य हैं यह द्रव्यवाद का मत है । जगत् का निर्माता एक महान सर्वव्यापी परमपुरुष है यह पुरुषवाद का मत है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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