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________________ प्रस्तावना २५ महावीर तथा उन के समकालीन कुछ अन्य दार्शनिकों के मतों का विवरण बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में मिलता है । उस समय यज्ञों से सब ईप्सित फल मिलते हैं यह माननेवाले वैदिक थे, जगत् का मूलतत्त्व ब्रह्म है और उस का साक्षात्कार ही अन्तिम ध्येय है यह माननेवाले उपनिषवादी भी थे । श्रमणों में भी पूरण कश्यप जैसे अक्रियावादी थेकिसी क्रिया से पुण्य होता है या किसी क्रिया से पाप होता है यह उन्हें मान्य नही था । मस्करी गोशाल जैसे नियतिवादी थे- उन के मत से संसारचक्र के निश्चित परिभ्रमण से ही जीव शुद्ध होता है उस भ्रमण में कोई परिवर्तन नही हो सकता । अजित केशकंबली जैसे उच्छेदवादी थे- वे जीव को चार महाभूतों से बना हुआ मानते थे तथा मरण के बाद जीव का अस्तित्व स्वीकार नही करते थे । संजय बेलहिपुत्र जैसे विक्षेपवादी थे वे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर नकारात्मक देते थे-परलोक है ऐसा नही मानते, परलोक नही है ऐसा भी नही मानते । पकुध कात्यायन जैसे अन्योन्यवादी थे - वे जीव, सुख, दुःख, तथा चार महाभूत इन सात पदार्थों को सर्वथा नित्य मानते थे तथा इन्हीं के परस्पर सम्पर्क से सब कार्य होते हैं यह मानते थे । अन्त में इन सब विवादों को निरर्थक माननेवाला बुद्ध का मध्यम मार्ग था- बुद्ध के अनुसार लोक शाश्वत है या नही, मरणोत्तर बुद्ध का अस्तित्व होता है या नही आदि प्रश्न चर्चा के योग्य नही हैं-' अव्याकरणीय ' हैं । केवल तृष्णा का निरोध ही इष्ट है तथा उसी के लिए सम्यक् दृष्टि आदि आठ अंगों का मार्ग आवश्यक है । १ महावीर के उपदेशों का जो विवरण आगमों में मिलता है उस से स्पष्ट होता है कि इन विविध वादों के विषय में उन के निश्चित विचार थे तथा वे उन विचारों का युक्तिपूर्वक प्रतिपादन करते थे । वे किसी प्रश्न को अव्याकरणीय नही मानते थे - द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव के अनुसार प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते थे । उन के उत्तर नकारात्मक नही थे - विधिरूप थे । वे नियतिवादी अथवा अक्रियावादी नही थे - जीव १ पं. दलसुख मालवणिया का निबन्ध ' आगमयुग का अनेकान्तवाद' इस दृष्टि से उपयुक्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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