SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [-९१ सर्वशून्यतापत्तिरेव स्यात् । तस्मात् प्रेक्षापूर्वकारिभिर्मुमुक्षुभिर्बोद्धपक्ष उपेक्षणीय एव न पक्षीकर्तव्य इति स्थितम् ॥ [ ९२. उपसंहारः।] एवं परोक्तसिद्धान्ताः सम्यग युक्त्या विचारिताः। भावसेनत्रिविद्येन वादिपर्वतवज्रिणा ॥ क्षीणेऽनुग्रहकारिता समजने सौजन्यमात्माधिके संमानं नुतभावसेनमुनिपे विद्यदेवे मयि । सिद्धान्तोऽयमथापि यः स्वधिषणागर्वोद्धतः केवलं संस्पर्धेत तदीयगर्वकुधरे वज्रायते मद्वचः॥ चार्वाकवेदान्तिकयौगभाट्टप्राभाकरापक्षणिकोक्ततत्त्वम् । मयोक्तयुक्त्या वितथं समर्थ्य समापितोऽयं प्रथमाधिकारः॥ इति परवादिगिरिसुरेश्वरश्रीभावसेनत्रैविद्यदेवरचिते मोक्षशास्त्रे विश्वतत्त्वप्रकाशे अशेषपरमततत्त्वविचारेण प्रथमः परिच्छेदः समाप्तः ॥ है । तात्पर्य यह कि बौद्ध मत से निर्वाणमार्ग का ठीकतरह वर्णन या अनुसरण सम्भव नही है। ९२. उपसंहार-इस प्रकार वादीरूपी पर्वतों के लिए वनधारी (इंद्र) के समान भावसेन त्रैविद्य ने उचित युक्तियों द्वारा जैनेतर सिद्धांतों का विचार किया ।। भावसेन विद्यदेव का यह नियम है कि दुर्बलों के प्रति अनुग्रह किया जाय, समानों के प्रति सौजन्य बताया जाया तथा श्रेष्ठों के प्रति सन्मान हो; किन्तु जो अपनी बुद्धि के गर्व से उद्धत हो कर स्पर्धा करे उसी के गर्वरूपी पर्वत के लिए वज्रके समान हमारे वचन हैं । हम ने उक्त युक्तियों द्वारा चार्वाक, वेदान्ती, योग ( नैयायिकवैशेषिक), भाट्ट तथा प्राभाकर ( मीमांसक), आर्ष (सांख्य ) एवं क्षणिक ( बौद्ध ) वादियों के कहे हुए तत्त्वों को असत्य सिद्ध कर यह पहला अधिकार समाप्त किया है ।। इस प्रकार परमत के वादीरूपी पर्वतों के लिए इन्द्र सदृश श्रीभावसेन विद्यदेव द्वारा रचित विश्वतत्त्वप्रकाश मोक्षशास्त्र का संपूर्ण परमतों के तत्त्वों के विचार का पहला परिच्छेद पूर्ण हुआ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy