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-७२] वैशेषिकमतोपसंहारः
२३५ तस्माद् द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायाः षडेव पदार्थाः, तत्र पृथिव्यप्तेजोवायुदिक्कालाकाशात्ममनांसीति नवैव द्रव्याणि, तत्रापि पृथिव्यामेव गन्धः, अप्स्वेव रसः, तेजस्येव रूपं, वायावेव स्पर्शः, द्रव्यत्वगुरुत्वस्नेहत्वबुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मसंस्कारशब्दसंख्यापरिमाणसंयोगविभागपरत्वापरत्वपृथक्त्वमिति चतुर्विंशतिर्गुणाः, उत्क्षेपणावक्षेपणाकुञ्चनप्रसारणगमनमिति पञ्चैव कर्माणि, परापरभेदेन' द्विविधं सामान्यं, नित्यद्रव्यवृत्तयोऽन्त्या विशेषाः, अवयवावयविप्रभृतीनां सबन्धः समघाय इति साधर्म्यवैधाभ्यां षट्पदार्थानां याथात्म्यतस्व. शानं निःश्रेयसहेतुरिति कथनं यत् किंचिदेव स्यात् वैशेषिकोक्तप्रकारेण पदार्थानां याथात्म्यतत्त्वानुपपत्तेः। तदनुपपत्ती साधर्म्यवैधाभ्यां षट्पदार्थयाथात्म्यतत्वज्ञानं निःश्रेयसहेतुरिति कथन वन्ध्यास्तनन्धयसौरू. प्यव्यावर्णनमनुकरोति निर्विषयत्वात् । [ ७२. वैशेषिकमते मुक्तिसंभवाभावः । ]
अथ मतं-दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदनन्तराभावादपवर्गः इति । अत्र तत्त्वज्ञानान्मिथ्याशानं निवर्तते, मिथ्या
इस प्रकार वैशेषिक मत की पदार्थ व्यवस्था का-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय ये छह पदार्थ हैं; पृथिवी, अप, तेज, वायु, दिशा, काल, आकाश, आत्मा, मन ये नौ द्रव्य हैं;पृथ्वी में गन्ध गुण है, अप में रस गुण है,तेज मे रूप गुण है,वायु में स्पर्श गुण है; द्रवत्व,गुरुत्व, स्नेहत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार, शब्द, संख्या, परिमाण, सयोग, विभाग, परत्वापरत्व, पृथक्त्व आदि चौवीस गुण हैं; उत्क्षेपण आदि पांच कर्म हैं; पर और अपर यह दो प्रकारका सामान्य है; नित्य द्रव्यों में रहनेवाले अन्तिम विशेष हैं, अवयव, अवयवी आदि का सम्बन्ध समवाय है-इस विवरण का यथोचित निरसन किया। अतः इन पदार्थों का ज्ञान यथार्थ ज्ञान नहीं है-उस से निःश्रेयस ( मुक्ति) की प्राप्ति भी संभव नही है।
७२. वैशेषिकमतमे मुक्ति असंभव है--वैशेषिक मतमें मुक्ति की प्रक्रिया इस प्रकार बतलाई है-तत्त्वों का ज्ञान होने से मिथ्या ज्ञान
१ परं सत्ता अपरं द्रव्यत्वादि । २ दृष्टान्ताभ्याम् ।
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