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________________ १५६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ४६ तत् कुतः ' शान्तो दान्त उपरतस्तितिक्षुः समाहितो भूत्वा ह्यात्मन्येवात्मानं पश्येत् ' ( सुबालोपनिषत् ९-१४ ) इति श्रुतेः । तदुक्तम् १ श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः । ज्ञात्वा च सततं ध्येय एते दर्शन हेतवः ॥ ( उद्घृत व्यायसार पृ. ८३ ) इति श्रवणमनननिदिध्यासनात् ब्रह्मसाक्षात्कारो जायते स एव प्रपञ्चस्य बाधक इति । तदयुक्तम् | व्यासपराशरशुकवामदेवादीनां श्रवणमनननिदिध्यासनेन ब्रह्मसाक्षात्कारेऽपि प्रपञ्चस्याद्यापि अबाध्यत्वेनावस्था. नात् । तादृशश्रवणमनननिदिध्यासनात् ब्रह्मसाक्षात्काराभावे न कस्यापि प्रमातुः ब्रह्मसाक्षात्कारो जायेत । ननु तेषां ब्रह्मसाक्षात्कारात् तदविद्याकृत एच प्रपञ्चः सोपादानो विनष्टः ततोऽन्यप्रमातॄणामविद्याकृतः प्रपश्चः न नश्यतीति तदेवाद्याप्यबाध्यत्वेन इदानीन्तनप्रमातृभिः दृश्यते, 'यस्य प्रमातुरविद्यया यः प्रपञ्च विनिर्मितः स तस्यैव दृश्यो भवति तत्प्रमातुर्ब्रह्मसाक्षाजो चार साधनों से संपन्न हो । ये चार साधन हैं - नित्य और अनित्य वस्तुओं में विवेक, शम, दम आदि की प्राप्ति, इहलोक और परलोक के विषय में वैराग्य तथा मोक्ष की इच्छा । जैसा कि कहा है शान्त, दान्त, विरक्त, सहनशील तथा सावधान होकर आत्मा में देखना चाहिए ।' और भी कहा है श्रुतिवाक्यों से सुनना चाहिये, युक्तियों से विचारना चाहिये तथा उसे जान कर सतत ध्यान करना चाहिये – ये दर्शन ( साक्षात्कार ) के साधन हैं।' इस प्रकार ब्रह्मसाक्षात्कार होने से प्रपंच बाधित होता है। 6 आत्मा को आत्मा को 1 साक्षात्कार के साधनों का यह सब विवरण सुनने पर प्रश्न होता है कि व्यास, पराशर, शुक, वामदेव आदि ऋषियों ने इन सब साधनों का अनुष्ठान किया तथा उन्हें साक्षाकार भी हुआ, फिर अभी तक प्रपंच कैसे विद्यमान है ? यदि साक्षात्कार से प्रपंच बाधित होता तो इस समय प्रपंच की प्रतीति ही नही होती । यदि ऐसे ऋषियों को भी साक्षात्कार न हुआ हो तो दूसरे सामान्य लोगों को कैसे हो सकेगा ? इस पर १ क्षान्तुमिच्छुः । २ ब्रह्मदर्शनहेतवः । ३ व्यासादीनाम् । ४ प्रपश्वादिकम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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