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________________ -४१] भ्रान्तिविचारः १२५ इदमिति' साधारणाकारग्रहे शुक्तित्वादिविशेषाग्रहे शुक्ल भासुरतादिसादृश्यसंदर्शनात् समुदबुद्धसंस्कारो रजतगोचरं स्मरणं जनयति तच्च गृहीतग्रहणस्वभावमपि मानसदोषेण तदंश मोषात् ग्रहणस्वरूपमेवावतिष्ठते। तथा च इदमंशग्रहणरजतांशस्मरणयोः स्वरूपतो विषयतश्च भेदप्रतीत्यभावात् अभेदव्यवहारः समानाधिकरणव्यपदेशश्च प्रवर्तते। रजतज्ञानस्य स्मरणरूपत्वं पारिशेषप्रसिद्धं पुरोदेशनिवेशिपदार्थस्य रजतज्ञानालम्बनत्वासंभवात् । तथा हि। पुरोदेशे निवेशि वस्तु न रजतज्ञानालम्बनं रजतत्वासमवायित्वात् शुक्तित्वात् प्रसिद्धशुक्तिवदिति। तस्माद् वीतं रजतज्ञानं स्मरणमेव रजतसंस्कारान्यत्वे सत्यगृहीतरजतस्यानुत्पद्यमानत्वात् सादृश्यसंदर्शनादुत्पद्यमानत्वात् संस्कारोबोधमन्तरेणानुत्पद्यमानत्वात् प्रसिद्धस्मरणवदिति । अथ नयनदोषवशात् पुरोवर्तिकाक्तिशकलमेव रजतत्वेन प्रतिभासत इति न रजतक्षानं स्मरणमिति चेन्न । शुक्तिर्न रजतत्वेनावभासते तद्रपेणासत्त्वात् पाषाणवदिति प्रमाणविरोधात् । तस्मादिदमंशग्रहणरजतांशस्मरणयोः स्वरूपेण विषयेण च न होने से · यह चांदी है ' इस प्रकार व्यवहार होता है । यहां चांदी का स्मरण होता है यह कहने का कारण यह है कि चांदी वस्तुतः विद्यमान तो नहीं है, वस्तुतः सीप विद्यमान है तथा सीप चांदी के ज्ञान का आधार नही हो सकती । अतः चांदी के न होते हुए, चांदी जैसे गुणों के देखने से पहले के संस्कार का उद्बोधन होने से, चांदी का ज्ञान होता है वह स्मरण ही हो सकता है । आंख के दोष से सीप ही चांदी के रूप में ज्ञात होती है यह कहना ठीक नहीं क्यों कि सीप और चांदी में स्पष्ट अन्तर है - सीप चांदी नही हो सकती अतः चांदी के रूप में प्रतीत भी नही हो सकती । इस लिए वर्तमान ज्ञान तथा पुरातन ज्ञान का स्मरण इन दोनों में भेद का ज्ञान न होना ही 'यह चांदी है' इस भ्रम का कारण है। जब ज्ञान तथा स्मरण में भेद प्रतीत होता है तब यह भ्रम दूर हो जाता है। १ इदमिति प्रत्यक्षं तदिति स्मृतिः। २ शुक्तिरजतयोः शुक्लत्वं सामान्यम् । ३ रजतांश । ४ रजतग्रहणस्वरूपमेव । ५ एकविभक्त्यन्तपदवाच्यत्वं समानाधिकरणत्वम्। . ६ रजताभावे रजतज्ञानम् अतः स्मरणम्। ७ पुंसः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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