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-३९] भ्रान्तिविचारः
११७ सकलार्थग्रहणम् । अथ तथा सकलात्मज्ञानानामनियतविषयत्वेन' सकलार्थग्रहणप्रसंगात् सर्वस्य सर्वज्ञतापत्तिरिति चेन्न । स्वावरणविग. मानुरूपयोग्यतया सकलज्ञानानां प्रतिनियतार्थव्यवस्थोपपत्तेः। आवरणं च अज्ञानकारणं सुप्रसिद्धमेव । तथा च घटज्ञानेनान्यज्ञानेन वा घटो गृह्यते इति विकल्पस्थावकाश एव न स्यात् ।
यदप्यन्यदनुमानम् अचर्चत्-वीताःप्रत्ययाः निरालम्बनाःप्रत्ययत्वात् शुक्तौ रजतप्रत्ययवदिति-तदचर्चिताभिधानं विचारासहत्वात् । तथा हि स्वसंवेदनप्रत्ययेन व्याभिचारस्तावत् । धर्मिग्राहकं प्रमाणं निरालम्बनं सालम्बनं वा । सालम्बनत्वे तेनैव हेतोर्व्यभिचारः । निरालम्बनत्वे हेतोः स्वरूपासिद्धत्वम् । दृष्टान्तग्राहकस्यापि सालम्बनत्वे तेनैव हेतोळभिचारः निरालम्बनत्वे आश्रयहीनो दृष्टान्तः स्यात् । शुक्तौ रजतज्ञानस्य निरालम्बनत्वाभावात् साध्यविकलो दृष्टान्तश्च । तथा हि । वीतं रजतज्ञानं निरालम्बनं न भवति । पुरोवर्तिचकचकायमानशुक्लभासुररूपवस्तुविषयआत्माओं को सब पदार्थों का ज्ञान क्यों नही होता इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जिस ज्ञान का आवरण जितना दूर होता है उतने ही पदार्थों का उसे ज्ञान होता है। विभिन्न आगाओं के अज्ञान-आवरण विभिन्न हैं अतः उन्हें विभिन्न संख्या में पदार्थों का ज्ञान होता है। अतः घट का ज्ञान सिर्फ ज्ञान से होता है या घटज्ञान से होता है ये विकल्प करना व्यर्थ है।
सीप में चांदी का ज्ञान निराधार है उसी प्रकार सब ज्ञान निराधार हैं यह अनुमान भी योग्य नही। स्वसंवेदन ज्ञान का अस्तित्व इस के विरुद्ध है । वादी अनुमान में धर्मी का वर्णन करता है यह धर्मी का ज्ञान भी यदि निराधार हो तो अनमान व्यर्थ होगा। यदि यह ज्ञान साधार है तो सब ज्ञानों को निराधार कैसे कह सकते हैं ? दृष्टान्त का ज्ञान भी यदि निराधार हो तो अनुमान-प्रयोग असम्भव होगा। दूसरे, सीप में चांदी
१ एकज्ञानेन घट एवं गृह्यते इति नियतविषयत्वम् एकज्ञानेन बहूनां विषयत्वम् इति अनियतविषयत्वम। २ स्वं वेदयतीति स्वसंवेदनम् इत्युक्ते स्वम् आलम्बनं जातम् । ३ धर्मिग्राहकस्य प्रमाणस्य प्रत्ययत्वेऽपि निरालम्बनत्वाभावः। ४ दृष्टान्तग्राहकं प्रमाण सालम्बनं निरालम्बनं वा सालम्बनत्वे इत्यादि ।
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