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________________ -२०] ईश्वरनिरासः ४५ अथ भूभुवनभूधरादिकं कार्य सामान्यवत्वे सति अस्मदादि२. बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् पटवदिति चेन्न । अस्यापि भागासिद्धत्वात् । कुतः पक्षीकृतेषु भूलोकादिशिवलोकान्तेषु अतलादिपातालेषु लोकालोक पर्वतादिषु च हेतोरप्रवृत्तेः। अथ भूभुवनभूधरादिकं कार्यम् अवयवित्वात् पटादिवदिति चेन्न । तस्याप्यसिद्धत्वात् । कथमिति चेत् , अवयवित्वं नामावयवेषु समवेतत्वमवयवाः समवायिकारणानि समवायिकारणेषु समवेतत्वं कार्यत्वमेव । ततश्च साध्याविशिष्टत्वेन स्वरूपासिद्धो हेतुरिति भूभुवनभूधरादीनां कार्यत्वं न साधयतीति कार्यत्वादिति हेतोआंगासिद्धत्वं समर्थितमेव स्यात् । एतेन क्षित्यादिकं पुरुषकृतम् उत्पत्तिमत्त्वात् जन्यत्वात् कारणव्यापारानुविधायित्वात् पूर्वानवत्वात् उत्तरान्तवत्वात् उभयान्तवत्वात् कादाचित्कत्वात् इत्यादयो हेतबो निरस्ताः। तेषामपि भूभुवनभूधरादिष्वभावेन भागासिद्धत्वाविशेषात्। अथ mr.wa भमि आदि कार्य हैं क्यों कि वे सामान्य से भिन्न हैं तथा हमारे बाह्य इन्द्रियों से जाने जाते हैं यह कथन भी योग्य नहीं। भूमि से शिवलोक तक (स्वर्गभूमियां ) तथा अतल आदि पाताल एवं चक्रवाल पर्वत आदि हमारे बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नहीं होते अतः उक्त कथन दोषयुक्त है। भमि आदि अवयवी हैं अतः कार्य हैं यह कथन भी युक्त नहीं क्यों कि अवयवी होना और कार्य होना एकही बात है-अवयव समवायी कारण होते हैं तथा अवयवी उनका कार्य होता है-अतः एकको दूसरे का हेतु बतलाना निरर्थक है । इसी प्रकार पृथ्वी आदि उत्पत्तियुक्त हैं, जन्य हैं ( किसी के द्वारा उत्पन्न होते हैं), कारण के अनुसार क्रियाएं करते हैं, आरम्भयुक्त हैं, अन्तयुक्त हैं, आरम्भ और अन्त से युक्त हैं, अनित्य हैं आदि हेतु भी जगत को पुरुषकृत सिद्ध नहीं करते क्यों कि पृथ्वी आदि में इन सब बातों का अस्तित्व सिद्ध नहीं है। कार्य वह है जो अपने कारण से १ सामान्यवत्त्वे सति इति सामान्यव्यतिरिक्ते सति । २ सामान्यम् अस्मदादिबायेद्रियग्राह्यं वर्तते तथापि कार्य न अत उक्तं सामान्यव्यतिरिक्ते सतीति। ३ लोकालोकश्चक्रवालः इत्यमरः। ४ अविशेषेण । ५ कारणं विना क्षित्यादिकं न जायते अतः कारणव्यापारानुविधायित्वात् । ६ पृथिव्याः पूर्वान्तवत्त्वं वर्तते उत्तरान्तवत्त्वमस्ति । ७ हेतूनाम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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