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________________ ४६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [२० स्वकारणसमवेतस्य सत्तासमवायलक्षणमस्मदभिमतं कार्यत्वमिति चेन्न। तस्यापि सकलप्रध्वंसेवभावेन भागासिद्धत्वात्। अथ वीतस्य भावस्य पक्षीकरणान्नायं दोष इति चेत् तर्हि सकलकार्यविनाशो बुद्धिमद्धेतुको न स्यात् । मा भूत् का नो हानिरिति चेत् तहपसिद्धान्तप्रसङ्ग एव स्यात् । कुतः इति चेत् महेश्वरः स्वसंजिहीर्षया सकलकार्य विनाशयतीति स्वस्य सिद्धान्तत्वात्। सत्तासमवायस्य विचार्यमाणे असंभवात् स्वरूपासिद्धत्वं च हेतोः स्यात् । तथा हि । स हि भवन् सत्तासमवायः स्वरूपेण सद्रपस्य भवेत् असद्पस्य वा । प्रथमपक्षः कक्षीक्रियते चेत् तदा वीतः सत्तासमवायरहितः स्वरूपेण सद्रूपत्वात् सामान्यवदिति सत्तासमवायस्याभाव एक स्यात्। अथ द्वितीयपक्षोऽङ्गीक्रियते तथापि वीतः सत्तासमवायरहितः समवेत हो तथा सत्ता के समवाय से युक्त हो-यह लक्षण भी पृथ्वी आदि के कार्य होनेमें साधक नहीं है। सभी विनाश कार्य तो होते हैं किन्तु कारण से समवेत या सत्ता-समवाय से युक्त नहीं होते। अतः कार्य होना और कारणसमवेत होना अविनाभावी नहीं हैं। विनाश अभावरूप है और हम सिर्फ भावरूप जगतको कार्य मानते हैं यह कहना भी ठीक नहीं क्यों कि महेश्वर अपनी संहारेच्छा से सब कार्यों का नाश करते हैं यह न्यायदर्शनकाही मत है। इस लिये जगत कार्य है यह सिद्ध नहीं हो सकता। ऊपर कार्य के लक्षण में सत्ता का समवाय होना आवश्यक कहा वह भी योग्य नहीं है । सत्ता के समवाय की कल्पना निरर्थक है। जिस वस्तु के साथ सत्ता का समवाय होता है वह यदि स्वयं सत् है तो उसे सत्तासमवाय की जरूरत नहीं-सामान्य आदि सत्तासमवाय के विना ही स्वयं सत् होते हैं उसी प्रकार यह वस्तु स्वयं सत् होगी। यदि यह वस्त स्वयं असत् है तो उसे सत्तासमवाय सत् कैसे बना सकेगा। वह खर के १ सत्तासमवायलक्षणस्य कार्यत्वस्य । २ कार्यभूतेषु। ३ यांगो वदति अस्माभिस्तु सकलप्रध्वंसाः अभावरूपाः पक्षीक्रियन्ते न किंतु वीतस्य भावस्य पक्षीकरणान्नायं दोषः। ४ नैयायिकादीनाम् । ५ पदार्थस्य । ६ अथवा स्वरूपेण असद्रूपस्य पदार्थस्य सत्तासमवायः भवेत् । ७ विवादापनः पदार्थः। ८ सामान्यं सत्तासमवायरहितं स्वरूपेण सदूपत्वात् । ९ विवादापन्नः पदार्थः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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