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________________ ११२ विश्वतत्त्वप्रकाशः प्रभावकचरित में वर्णित शान्तिसूरि, वीरसूरि, सूराचार्य आदि पण्डित इसी प्रकार के हैं। तार्किक साहित्य के इतिहास की दृष्टि से ये सब उल्लेख विशेष महत्व के नही हैं । तथापि जैनधर्म के सामाजिक प्रभाव के इतिहास में उन का विशिष्ट स्थान है। १००, ऋणनिर्देश-प्रस्तुत ग्रंथ की प्रतियां प्राप्त कराने में श्री.ब्र.माणिकचन्द्रजी चवरे, कारंजा तथा श्री. डॉ.विद्याचन्द्रजी शाह,बम्बई ने सहायता की । श्री बलात्कारगण मन्दिर, कारंजा, श्री. चन्द्रप्रम मंदिर, भुलेश्वर, बम्बई तथा श्री माणिकचंद हीगचंद ग्रंथ भांडार,चौपाटी, बम्बई के अधिकारियों ने प्रतियां उपयोगार्थ दीं। हुम्मच के जैन मठ के श्री. देवेन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने वहां की प्रति के उपयोग की अनुमति दी तथा पं. भुजबलिशास्त्री, मुडबिद्री के सहयोग से इस प्रति के पाठान्तर मिल सके । इस प्रस्तावना के प्रारम्भ में दिया हुआ भावसेन के समाधिलेख का चित्र भारतशासन के प्राचीन लिपिविद , उटकमंड, के कार्यालय से मिला तथा उन्हों ने इसके प्रकाशन की अनुमति दी। बहां के सहायक लिपिविद् श्री. श्रीनिवास रित्ती के सहयोग से इस लेख का वाचन प्राप्त हुआ। उन्हों ने भावसेन की ग्रन्थ के अन्तिम भाग की प्रशस्ति के कनड पद्यों के संशोधन में भी सहायता दी। इन सब महानुभावों के सहयोग के लिए हम हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। अन्त में जीवराज जैन ग्रन्थमाला के प्रबंधकवर्ग तथा प्रधान सम्पादक डॉ. जैन एवं डॉ. उपाध्ये के प्रति भी हम आभार व्यक्त करते हैं। उन के उदार सहयोग एवं प्रोत्साहन से ही यह कार्य इस रूप में सम्पन्न हो सका है। जावरा, १५-८-१९६२. - सम्पादक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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