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________________ १०२ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ प्रकाशन सं. विजयोदयसूरि, जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, अहमदाबाद, १९३७ ] स्याद्वाद कल्पलता – यह हरिभद्र के शास्त्रवार्तासमुच्चय की टीका है तथा १३००० श्लोकों जितने विस्तार की है । नयचक्रतुम्ब – यह मल्लवादी के विलुप्त ग्रन्थ द्वादशार नयचक्र के उद्धार का प्रयास है । नयों के चक्र के तुम्ब ( केन्द्र ) के रूप में स्याद्वाद का वर्णन इस में है । स्याद्वाद मंजूषा - यह मल्लिषेण की स्याद्वादमंजरी की टीका है । उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त यशोविजय के जिन ग्रन्थों का पता चलता है उन के नाम इस प्रकार है ' - देवधर्मपरीक्षा, द्वात्रिंशिका, ज्ञानार्णव, तचालोक विवरण, द्रव्यालोक विवरण, त्रिसूत्र्यालोक, प्रमाणरहस्य, स्याद्वादरहस्य, वादमाला, विधिवाद, वेदान्त निर्णय, सिद्धान्ततर्कपरिष्कार, द्रव्यपर्याययुक्ति, अध्यात्ममतपरीक्षा, अध्यात्मसार, आध्यात्मिक मतदलन, उपदेशरहस्य, ज्ञानसार, परमात्मपंचविंशतिका, वैराग्यकन्पलता, अध्यात्मोपदेश, अध्यात्मोपनिषद्, गुरुतत्त्वत्रिनिश्चय, आराधक विराधकचतुभंगी, धर्मसंग्रहटिप्पण, निशाभक्तप्रकरण, प्रतिमाशतक, मार्गपरिशुद्धि, यतिलक्षणसमुच्चय, सामाचारीप्रकरण, अस्पृशद्गतिवाद, कूपदृष्टान्त, योगविंशिका, योगदीपिका, योगदर्शन विवरण, कर्मप्रकृतिटीका, छन्दश्चूडामणि, शठप्रकरण, काव्यप्रकाशटीका, अलंकारचूडामणिटीका, तथा कई स्तोत्रादि । ८६. भावप्रभ-ये पूर्णिमागच्छ के महिमप्रभसूरि के शिष्य थे। यशोविजय के नयोपदेश पर इन्हों ने टीका लिखी है । इन की अन्य रचनाएं दो हैं- प्रतिमाशतक तथा भक्तामरसमस्यापूर्ति ( सं. १७११ सन १६५५ )। ८७. यशस्वत्सागर -- ये तपागच्छ के यश: सागर के शिष्य थे | इन की ज्ञात तिथियां सन १६६५ से १७०४ तक हैं । इन् के तर्क - १) इन में से पहले तेरह ग्रन्थ नाम से तर्कविषयक ही प्रतीत होते हैं किन्तु हमें उन का अधिक परिचय नही मिल सका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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