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र प्रकाशकीय निवेदन 20
जिज्ञासुओंमें परमसत्श्रुतके प्रति सत्रुचि जागृत करनेके हेतु परम निष्कारण करुणाभावन प० ० श्रीमद्जीने बम्बईमें परमश्रुत प्रभावक मण्डलकी स्थापना की थी।
और श्रीमद्राजचंद्रजैनशास्त्रमालाके नामसे अनेक सत्को प्रकट करनेवाले अनेक ग्रन्थपुष्प निकाले गये । वैसे श्री भोजकवि-विरचित यह ग्रन्थपुष्प द्रव्यानुयोगतर्कणा वी• नि० सम्वत् २४३२ में प्रकाशित किया गया था।
कालान्तरमें, इस मण्डलका प्रकाशन-कार्य श्रीमद्राजचंद्र आश्रमके हस्तांतर्गत प्राप्त हुआ। निरन्तर माँग रहने पर एवम् आवश्यकता समझकर इस द्वितीयावृत्तिको जिज्ञासुओंके कर-कमलोंमें प्रस्तुत करते हुए हृदय हर्षविभोर होरहा है।
बौद्धिक क्षयोपशमकी न्यूनताके कारण अशुद्धियाँ रह जाना सम्भव है। अतः सुश पाठक शुद्ध करके पढ़ें और क्षमा करें ।
श्रीमदूराजचंद्र आश्रम ।
अगास १०-६-७७
निवेदकरावजीभाई छ० देसाई
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