________________ 240] श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् तदन्तिषच्छीविनितादिवारी / निधोश्वराः शास्त्रविचारदक्षाः // 22 // श्लोकार्थ:-उस गच्छरूपी कमलको सूर्यको किरणके समान श्रीभावसागरजो इस नामसे प्रसिद्ध सूरि हुए और उनके शिष्य शाखविचारमें चतुर भोविनोतसागरजो हुए // 22 // तेषां विनेयलेशेन भोजेन रचितोक्तिभिः। परस्वात्मप्रबोधार्थ द्रव्यानुयोगतर्कणा // 23 // इति श्रीद्रव्यानुयोगतर्कणायां कृतिभोजविनिर्मितायां __ समाप्तिसन्दर्भाध्यायः पञ्चदशः। श्लोकार्थ:-उन श्रीविनीतसागरजोके तुच्छ शिष्य मुझ भोजसागरने परके तथा निजके प्रबोधके लिये वचनोंसे इस द्रव्यानुयोगतर्कणाको निर्मित किया // 23 // श्रीगुरोश्चरणद्वन्द्वसरसीरुहसेवया / ठाकुरप्रसादविदुषा ग्रन्थोऽयं समनूदितः // 1 // इति श्रीपण्डितठाकुरप्रसादप्रणीतभाषानुवादसमलङ्कतायां द्रव्यानुयोगतर्कणायां पञ्चदशोऽध्यायायः // 15 // / शं भूयात् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org...