________________ 216 ] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् नसंयोगकृत्पर्यायस्तत्रास्ति / तत इदं शरीरमावश्यकं जानामीत्यादिव्यवहारोऽत एव भवति मृतं दहतीतिवत् / पुनः परमभावग्राहकनये तस्य कर्मनोकर्मजनितचेतनस्वभावस्याचेतनधर्मता अचेतनस्वभावत्वं, यथा घृतमनूष्णमित्यादिवत् // 6 // व्याख्यार्थ:-असद्भूतव्यवहार नयसे ज्ञानावरण आदि कर्म और मन, वचन, कायरूप नोकर्म इन दोनों में चेतन स्वभाव है; क्योंकि कम और नोकमै इन दोनों में चेतनके संयोगसे किया हुआ पर्याय है। इसी कारण उस चेतनसंयोगकृत्पर्यायसे 'मृतकको भस्म करता है' इस व्यवहारकी भांति 'इस शरीरको मैं आवश्यक ( जरूरी ) जानता हूं' इत्यादि व्यवहार होता है / और परमभावग्राहक नयके मत में तो उस कर्म तथा नोकमसे उत्पन्न चेतन भावके अचेतन स्वभावपना है, जैसे 'अनुष्ण ( ठंढ़ा ) घृत इत्यादिकी भांति // 6 // असद्भूतव्यवहारे जीवाचेतनधर्मता। परमभावग्राहके मूर्तनोकर्मकर्मता // 7 // भावार्थ:-असद्भूतव्यवहार नयसे जीवमें अचेतनस्वभावता है और परमभावग्राहक नयमें नोकर्म तथा कर्म मूर्त हैं // 7 // व्याख्या / असद्भूतव्यवहारनये जीवतीति जीवस्तस्याचेतनधर्मस्तस्य भावो जीवाचेतनधर्मतास्ति / अतएव जडोऽयमचेतनोऽयमित्यादिव्यवहारोऽस्ति / एतेनानुमिनोमि जानामीति प्रतीत्या विलक्षणाज्ञानसिद्धिबैदान्तिनामपास्ता, सद्भतव्यवहारनयग्राह्यणाचेतनस्वभावेनैव तदुपपत्तेः / अथ परममावग्राहकनये मूर्ती नोकर्मकर्मता मूर्त्तनोकर्मकर्मता वर्तते / कर्मनोकर्मणोमूर्तस्वभावोऽस्तीत्यर्थः // 8 // व्याख्यार्थः-असद्भूतव्यवहार नयके मतसे जो प्राण धारण करता है वह जीव है। उसके अचेतनधर्मपना जो जीवाचेतनधर्मता वह है अर्थात् जीव अचेतन स्वभावका धारक है / इस अचेतन स्वभावके माननेसे ही यह जीव अचेतन है, जड़ है इत्यादि व्यवहार होता है / इससे "मैं अनुमान करता हूं, जानता हूँ, इत्यादि प्रतीति ( अनुभव ) से विलक्षण ( अनिर्वचनीय ) अज्ञानकी सिद्धि होती है" इस वेदान्तियोंके कथनका खंडन हुआ, क्योंकि असद्भूतव्यवहार नयसे ग्रहण करनेयोग्य जो अचेतन स्वभाव है इस अचेतन स्वभावसे ही उस अज्ञानकी सिद्धि हो जाती है / और परमभावग्राहक नयसे मूर्त ऐसी नोकर्मकर्मता वर्तती है अर्थात् कर्म तथा नोकर्मके मूर्त स्वभाव हैं // 7 // असद्भूतव्यवहारे जीवमूर्त्तत्वमिष्यते / परमे पुद्गलं हित्वा द्रव्यामूर्तत्वमाहितम् // 8 // भावार्थ:-असद्भूतव्यवहारनयके मतमें जीव मूर्त स्वभावका भी धारक है और परमभावग्राहक नयमें पुद्गलको छोड़कर सब द्रव्योंमें अमूर्तस्वभावता स्थापित की गई है // 8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org