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________________ द्रव्यानुयोगतकणा [ १९७ मृव्यानुवृत्तः। तथा पुनः सामान्यस्यापि स्थूलार्थान्त रघटादिनाशेऽनित्यत्वं, घटनाशे मृन्न घट इति प्रतीतेः ॥१७॥ व्याख्यार्थः-विद्यमानवस्तुको रूपान्तरसे अर्थात् पर्यायविशेषसे एक अवस्थासे दूसरी अवस्थामें प्राप्त करते हुए जो द्रव्य दो भेदयुक्त अर्थात् इस रूपसे नित्य है और इस रूपसे अनित्य है इस प्रकार विचित्रतासे भासता है; वहाँ सत्सामान्य तथा विशेपसे स्थूल अर्थान्तरकी नाशता है जैसे-विशेषके सामान्यरूपसे अनित्यता है । दृष्टान्त-जैसे घटके नाश होनेपर भी मृत्तिकारूपकी अनुवृत्ति अन्य पर्यायोंमें होती है वैसे सामान्यके भी स्थूल पदार्थांतर घट आदिका नाश होनेपर अनित्यता है । क्योंकि घटरूपसे जो मृत्तिका है वह घट नहीं है ऐसी प्रतीति होती है ॥१७॥ नित्यत्वं नास्ति चेत्तत्र कार्य नैवान्वयं विना। कार्यकालेऽप्यसन हेतुः परिणति विगोपयेत् ॥१८॥ भावार्थः-यदि पदार्थकी नित्यता नहीं मानोगे तो अन्वयके विना कार्यकी उत्पत्तिही न होगी । और कार्यकालमें भी अविद्यमान हेतु परिणामको नहीं होने देगा ॥ १८ ॥ व्याख्या । चेद्यदि नित्यत्वं नास्त्यथ चैकान्तक्षणिकमेव स्वलक्षणमस्ति । तत्र त्वस्वयं विना कार्य नो निष्पद्यते । यतः कारणक्षणं कार्यक्षणोत्पत्तिकाले च निर्हेतुकनाशमनुभवन्नसम्नेवास्ति । तच्च कार्यक्षणपरिणति कथं कुर्यात्, असत्कारणक्षण: कार्यक्षणं करोति तदा विनष्टकारणादथवानुत्पन्नकारणात्कार्य निष्पन्नं युज्यते, तदा तु कार्यकारणभावस्य विडम्बना जायते । अवहित एव यः कारणक्षणः कार्यक्षणं च कुरुत एवं यदोच्यते तदापि रूपालोकमनस्कारादिक्षणरूपादीनां विषय उपादानालोकादिकविषये च निश्चितमिति व्यवस्था कथं घटते । यतोऽन्वयं विना शक्तिमात्रविषय उपादाननिमित्तविषयेऽपि कथयितुर्व्यवहारो न स्यात्, तस्मादुपादानमित्यम्वयित्वेन मन्तव्यम् । अथान्वयित्वं च तदेव निस्यस्वभावत्वं मन्तव्यमित्यर्थः ॥१८॥ ___ व्याख्यार्थः-यदि पदार्थकी नित्यता नहीं है किन्तु सर्वथा क्षणिक रूपही पदार्थका लक्षण है ऐसा मानते हो तो इस माननेमें कारणके अन्वय अर्थात् किसी स्वभावकी अनुवृत्ति विना कार्य नहीं सिद्ध हो सकता। क्योंकि कारणका क्षण कार्यक्षणके उत्पत्तिकालमें भी हेतुरहित होकर नाशका अनुभव करता हुआ असत्रूप ही है और वह असत् कारणक्षण कार्यक्षणका परिणाम कैसे करेगा ? क्योंकि जब असत् कारणक्षण ही कार्यक्षणकी उत्पत्तिको करेगा तब विनष्ट कारणसे कार्य उत्पन्न होता है अथवा अनुत्पन्न (नहीं पैदा हुए) कारणसे कार्य उत्पन्न होता है ऐसा कथन करना ठीक होता है । और नष्ट हुए तथा अनुत्पन्न कारणसे कार्य सिद्ध होता है ऐसा कथन करोगे तो कार्यकारणभावका मानना यह विडम्बनाही है । भावार्थ-नष्ट तथा अनुत्पन्न कारण कार्यको कैसे कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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