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श्री परमात्मने नमः।
प्रस्तावना विदित हो कि अनादिकालीन सर्वोत्तम जैन धर्ममें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूप रत्नत्रयके समुदायको मोक्षकी प्राप्तिके प्रति कारणता है । इसमें भी सम्यग्दर्शन प्रधान है । क्योंकि, उसके विना ज्ञानको और सम्यग्ज्ञानके विना चारित्रको सम्यक् पदकी प्राप्ति नहीं होती है। वह सम्यग्दर्शन जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल इन षट् द्रव्योंके यथार्थ स्वरूपको जानकर उसमें श्रद्धान (विश्वास) करनेसे होता है । अतः सिद्ध हुआ कि मोक्षाभिलाषी जनों को सर्वतः प्रथम षट् द्रव्योंका ज्ञान करना अत्यन्त आवश्यक है । वह ज्ञान अन्तिम द्रव्यानुयोगसे होता है। इसी कारण पूज्य पुरुषोंने द्रव्यानुयोगके ज्ञान की प्रशंसा मुक्तकंठ होकर की है और इसके अभ्यास करनेवालोंको उत्तम कहा है।
प्राचीन आचार्यों और बुद्धिमान् गृहस्थरत्नोंने अपरिमित आपत्तियों और परिश्रमोंको सहन करके परोपकारबुद्धिसे इस विषयके सहस्रोंकी रचना की थी। परन्तु विकराल कलिकालके प्रभावसे जीवोंके आयु, बल, बुद्धि तथा सद्धर्मकी श्रद्धा आदिमें प्रति समय होती हुई मंदता, प्रमाद और विषयाभिलाषिताकी वृद्धि एवं दुष्टोंकी दुष्टता आदिसे अनेक ग्रन्थ तो निरादरपूर्वक नष्ट होगये और बहुतसे तल्लाकोंदार कुफल और मूल्के अधिकारमें रहनेसे जीर्ण हो रहे हैं। जिनका कि सूचीके विना पता भी नहीं लगता। यह अत्यन्त खेदका विषय है।
___ तथापि दिगम्बर संप्रदायमें समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, परमात्मप्रकाश, राजवार्तिक, श्लोकवात्तिक, प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्रोदय, अष्टसहस्री, आप्तपरीक्षा, पंचाध्यायी सटीक, द्रव्यसंग्रह, नयचक्र, सप्तभंगतरंगिणी आदि और श्वेताम्बर' संप्रदायमें संमितितर्क, षोडशक, स्याद्वादरत्नाकरावतारिका, स्याद्वादमंजरी, तत्त्वार्थाधिगमभाष्य आदि अनेक प्रन्थ जो प्रचारमें आरहे हैं, उनसे संतोष है।
श्वेताम्बर संप्रदायके उक्त ग्रन्थोंमें यथार्थ नामका धारक यह "द्रव्यानुयोगतर्कणा" नामक शाला भी एक है। इसके कर्त्ता तपोगच्छगगनमण्डलमार्तण्ड श्रीविनंतसागरजाके मुख्य शिष्य द्रव्यविज्ञाननागर सकलगुणसागर श्रीभोजसागरजी हैं । उक्त महात्माने अपने अवतारसे किस वसुधामंडलको मंडित किया यह शीघ्रतामें निश्चित न हो सका। समयके विषय वाचकमुख्य श्रीयशोविजयोपाध्यायजीविरचित्त द्रव्य गुणपर्याय भाषाविवरणके अनुसार इस प्रकृत शास्त्रका संकलन करनेसे अनुमान किया जाता है कि विक्रम सं० १५०० के पीछे किसी समय इन्होंने यह ग्रन्थ रचा है ।
(१) श्वेताम्बर संप्रदायके प्रचलित ग्रन्थोंके विशेष नाम उपस्थित नहीं थे, इसलिये थोडेसे ही नाय दिखलाये गये हैं।
(२) तपोगच्छकी एक दो पत्रों की पट्टावली देखी, उसमें भी इनका तथा इनके गुरुजनोंका वर्णन नहीं मिला।
(३) इनके नामके स्मरणार्थ काशी में एक विशाल श्वेताम्बरपाठशाला है।
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