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( १२ ) वि० सं० १९५७ मिती चैत्र वदी ५ (गुजराती) मंगलवारको दोपहरके २ बजे राजकोट में इस नश्वर शरीरका त्याग किया ।
इनके देहान्तके समाचारसे मुमुक्षुओंमें अत्यन्त शोकके बादल छा गये । अनेक समाचार पत्रोंने भी इनके लिये शोक प्रदर्शित किया था ।
श्रीमद्जीका पार्थिव शरीर आज हमारी आँखोंके सामने नहीं है, किन्तु उनका सद्उपदेश, जबतक लोकमें सूर्यचन्द्र हैं तबतक स्थिर रहेगा तथा मुमुक्षुओंको आत्मज्ञानमें एक महान सहायक रूप होगा ।
श्रीमद्जीने परम सत् श्रुतके प्रचारार्थ एक सुन्दर योजना तैयार की थी । जिससे मनुष्य समाज में परमार्थ मार्ग प्रकाशित हो । इनकी विद्यमानतामें वह योजना सफल हुई और तदनुसार परमश्रुत प्रभावक मंडलकी स्थापना हुई । इस मंडलकी ओरसे दोनों सम्प्रदायों के अनेक सद्ग्रन्थोंका प्रकाशन हुआ है । इन ग्रन्थोंके मनन अध्ययन से समाज में अच्छी जागृति आई | गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छमें आज घर घर सद्-ग्रन्थोंका जो अभ्यास चालू है वह इसी संस्थाका ही प्रताप है । 'रायचन्द्र अने प्रन्थमाला मंडल की अधीनतामें काम करता थी । राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी इस संस्थाके ट्रस्टी और भाई रेवाशंकर जगजीवनदासजी मुख्य कार्यकर्ता थे । भाई रेवाशंकरजीके देहोत्सर्ग के बाद संस्थामें कुछ शिथिलता आगई; परन्तु अब उस संस्थाका काम श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम अगासके ट्रस्टियोंने संभाल लिया है और सुचारु रूपसे पूर्वानुसार सभी कार्य चल रहे हैं।
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इस आश्रम की ओरसे श्रीमद्जीका सभी साहित्य सुपाठ्य रूपसे प्रकाशित हुआ है । 'श्रीमद् राजचन्द्र' एक विशाल ग्रन्थ है, जिसमें उनके आध्यात्मिक पत्र तथा लेखोंका अच्छा संग्रह है ।
श्रीमद्जी के विषय में विशेष जाननेकी इच्छावालोंको, इस आश्रम से प्रकाशित 'श्रीमद् राजचन्द्र जीवनकला' अवलोकनीय है ।
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- गुणभद्र जैन.
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