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कुम्भमौलिसुवर्णेषु व्ययोत्पत्तिस्थिरात्मसु । दुःखहर्षोपयुक्तेषु मत्वं निश्चलं त्रिषु ॥ ३ ॥
भावार्थः—नाश, उत्पत्ति तथा स्थिरतायुक्त और दुःख तथा हर्षसे उपयुक्त सुवर्णमयघट सुवर्णमय मुकुट तथा सुवर्ण इन तीनों में सुवर्णरूपता स्थिरतासे है ॥३॥
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व्याख्या | कुम्मो घटो हेमघटहेममौलिमसु नाशोत्पत्ति वरूपेषु दुःखहर्षाभ्यामुपयुक्तेषु हेमत्वं सुवर्णत्वं तिष्ठति । द्रव्ये चैकस्मिन्नव घटाकारनाशान्मुकुटाका रोपत्तिः, पुनर्हेमाकारेण स्थिरत्वमित्येतल्ल - क्षणत्रयं प्रकटाकारेण दृश्यते । तस्माद्ध मघटं मंङक्त्वा हेममुकुटं निष्पाद्यते उभयत्र हेमत्वं स्थिरम् । हेमघटार्थी दुःखवान् भवति घटाकार हेमव्ययसत्त्वात् । हेममुकुटार्थी हर्षवानस्ति हेममुकुटाकारेण सत्यत्वात् । पुनर्हेममात्रार्थस्तु तदा दुःखवानपि सुखवानपि न, स्थितिपरिणामेन विद्यमानत्वात् भवत्वाच्च । तस्माद्धमसामान्यस्थितिः सत्या इति । एवं सर्वत्रोत्पादव्यय प्रोव्यपर्याया द्रव्यरूपेण ज्ञेया: । अत्रोत्पादव्ययभाग् भिन्नं द्रव्यं तथा स्थितिमाक् द्रव्यं भिन्नं किमपि न दृश्यते ततो घटमुकुटाद्याकारस्परिहेमैव केवलं द्रव्यम् । न हि युद्धवं भवेत् ध ुवत्वस्य प्रतीतिरप्यस्ति " तद्भावाव्ययं नित्यं" इति लक्षणेन परिणामेन च ध्रुवमपरमधुवमपि । सर्वमपीत्थं भावनीयम् ॥३॥
ततश्च
व्याख्यार्थः— नाश उत्पत्ति तथा ध्रुवतारूप लक्षणसंयुक्त और दुःख तथा हर्षसे उपयुक्त सुवर्णके घट; सुवर्णके मुकुट सुवर्ण इन तीनों में सुवर्णपना स्थिर है; अर्थात् सुबर्णत्व सबमें है; जैसे एक ही सुवर्णरूप द्रव्य में घटके आकारका नाश मुकुटके आकारकी उत्पत्ति और सुवर्णरूप आकारकी स्थिति है । और सुवर्णरूप द्रव्यमें घटके आकार के नाशसे मुकुटके आकार की उत्पत्ति होती है; और सुवर्ण आकारसे उसमें स्थिरता ( धौव्य ) है; इस प्रकार यह तीनों लक्षण एक ही द्रव्यमें प्रकटता से दीखते हैं । इस कारण सुवर्णके घटको तोडकर सुवर्णका मुकुट बनाया जाता है । और सुवर्णपना घट तथा मुकुट इन दोनोंमें स्थिर है । अब जिस समय सुवर्णघटको तोड़कर उसका मुकुट बनता है; तब सुवर्णके घटको चाहनेवाला पुरुष दुःखी होता है; क्योंकि - घटके आकारका जो सुवर्ण था उसका व्यय ( नाश) होता है; ओर जो पुरुष हेमके मुकुटको चाहनेवाला है; वह प्रसन्न है; क्योंकि वह सुवर्ण हेम मुकुटके आकारसे विद्यमान है; और जो केवल सुवर्णको ही चाहनेवाला है; वह उस समय में न दुःखी है; और न सुखो है; क्योंकि — स्थितिरूप परिणामसे जो सुवर्ण घटमें था वही मुकुटमें भी विद्यमान है; और नित्य है । इसलिये सुत्रकी सामान्यस्थिति सत्य है । इस प्रकार सर्वत्र उत्पाद व्यय तथा धौव्य पर्याय द्रव्यरूपसे जानने चाहियें। यहांपर उत्पाद और व्ययको धारण करनेवाला द्रव्य भिन्न है; तथा स्थिति (नित्यता) का भागी द्रव्य भिन्न है; ऐसा कुछ भी नहीं दीख पड़ता है; अर्थात् उत्पाद व्यय और स्थितिका धारक एक ही द्रव्य है । इस कारण घट
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