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द्रव्यानुयोगतर्कणा
[ १३१ णके एकदेश तत्त्वार्थको जो ग्रहण करता है, वह व्यवहार कहलाता है, यह निश्चय और व्यवहार इन दोनों नयोंका विवेक है। और निश्चयनयका विषय तथा व्यवहारनयका विषय तो भिन्न ही है, यह अनुभवसे सिद्ध है। और व्यवहारग्राहक प्रमाण असत् है, इससे उसकी निष्ठा (उत्पत्ति ) नहीं है, ऐसा नहीं क्योंकि-जैसे अन्यवादी सविकल्पक झानको और निर्विकल्पकको भिन्न ही मानते हैं, उसी प्रकार निश्चय और व्यवहार है, ऐसा हृदयमें विचारना चाहिये ॥ २३ ॥
अथोपचारं निर्दिशति । अब उपचारका निर्देश करते हैं।
बाह्यस्याभ्यन्तरत्वं यद्वहुव्यक्तरभेदता ।
यच्च द्रव्यस्य नेमल्यमिति निश्चयगोचराः ॥ २४ ॥ भावार्थः-जो बाह्य पदार्थका अन्तरंगत्व है, जो अनेकव्यक्तिगत अभेदता है, और जो द्रव्यकी निर्मलता है, सो सब निश्चयनयका विषय है ।। २४ ॥
व्याख्या। यद्वाह्यस्य बृाह्यर्थस्याभ्यन्तरत्वमन्तरङ्गवं वर्तते तदतिगोचरं निश्चयविषयमित्यर्थः यथा "समाधिर्नन्दनं धैर्यो दंभोलि: समता समा। ज्ञान महाविमानं च वासरश्रीरियं पुनः ॥१॥" इत्यादि पुण्डरीकाध्ययनाद्यर्थोऽप्येवं भावनीयः । अथ पुनर्बहुव्यक्ते रनेकविशेषस्याभेदता भेदराहित्यं तदपि निश्चयविषयं यथा “एगे आया" इत्यादिसूत्रम, तथा वेदान्तदर्शनमपि शुद्धसङग्रहनयादेशरूपः शुद्धनिश्च पनयार्थः संमतिग्रन्थे कथितः । तथा पुन व्यस्य पदार्थस्य नेमल्यं तदपि निश्चयविषयम् । नेमल्यं तु विमल परिणतिर्बाह्यनिरपेक्षपरिणामस्सोऽपि निश्चयनयार्थो बोद्धव्यः । यथा “आयासामाइए आयासामाइ यस्स अट्ट" एवमेतेऽभ्यन्तर-- स्वादयो निश्चयगोचरा एव यथा यया रीत्या लोकातिक्रान्तीऽर्थोऽवाप्यते तथा तया रोत्या निश्वयनयस्य भेदा भवन्ति तस्माच्च लोकोतरार्थभावना समायातीति ज्ञेयम् ॥ २४ ॥
व्याख्यार्थः-जो बाह्य पदार्थका आभ्यन्तरत्व अर्थात् अन्तरंगना है, वह निश्चय नयका विषय है, जैसे समाधि, नंदनवन, दंभोलि (वन) समता सभाज्ञान महाविमान .
और यह वासरश्री अर्थात् दिनकी शोभा । १। इत्यादि पुण्डरोकाध्ययनार्थ भी इसी प्रकार विचारना चाहिये। और बहुव्यक्तिगत जो अनेक विशेष हैं, उनको अभेदता (भेदरहितपना) जो है, बह भी निश्चयनयका विषय है, जैसे “एगे आया" इत्यादि सूत्र है। इसी प्रकार वेदान्त दर्शन भी शुद्वसहनयका आदेशरूर होने से शुद्वनिधनका अर्थरूप संमति प्रन्थमें कहा है। और जो द्रव्य अर्थात् पदार्थको निर्मलता है, वह भो निश्चयनयका विषय है, यहाँपर नैर्मल्य शब्दका अर्थ निर्मल परिणाम अर्थात् बाह्य विषाकी अपेक्षा न रखवाला जो द्रव्यका परिणाम है, वह भी निश्वयनयका ही अर्थ ( विषय ) समझना चाहिये, जैसे “ आया सामाइय आया सामाइयस्स अट्टे" इत्यादि । इस
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