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( ८ ) होता है । उत्कृष्ट संवेग, ज्ञान-योग और सत्संगसे यह ज्ञान प्राप्त होता है, अर्थात् पूर्वभव प्रत्यक्ष अनुभव में आ जाता है ।
जबतक पूर्वभव गम्य न हो तब तक आत्मा भविष्यकालके लिए शंकितभावसे धर्म-प्रयत्न किया करती है, और ऐसा सशंकित प्रयत्न योग्य सिद्धि नहीं देता ।" पुनर्जन्म की सिद्धिके लिए श्रीमद्जीने एक विस्तृत पत्र लिखा है जो 'श्रीमद् राजचन्द्र' प्रन्थ में प्रकाशित है । पुनर्जन्म सम्बन्धी इनके विचार बड़े गम्भीर और विशेष प्रकार से मनन करने योग्य हैं ।
१९ वर्षकी अवस्था में श्रीमद्जीने एक बड़ी सभामें सौ अवधान किए थे, जिस देखकर उपस्थित जनता दांतों तले उंगली दबाने लगी थी ।
अंग्रेजी प्रसिद्ध पत्र 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' ने अपने ता० २४ जनवरी १८८७ के अंकमें श्रीमद्जी के सम्बन्धमें एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था 'स्मरण शक्ति तथा मानसिक शक्तिके
अद्भुत प्रयोग ।'
“रामचन्द्र रवजीभाई नामके एक १९ वर्षके युवा हिन्दूको स्मरणशक्ति तथा मानसिक शक्तिके प्रयोग देखनेके लिये गत शनिवारको संध्या समय फरामजी कावसजी इन्स्टीट्यूट में देशी सज्जनोंका एक भव्य सम्मेलन हुआ था । इस सम्मेलन के सभापति डाक्टर पिटर्सन नियुक्त हुए थे । भिन्न भिन्न जातियोंके दर्शकों में से दस सज्जनोंकी एक समिति संगठित की गई। इन सज्जनोंने दस भाषाओंके छ छ शब्दोंके दस वाक्य बनाकर लिख लिए और अक्रमसे बारो बारीसे सुना दिए । थोड़े ही समय बाद इस हिन्दू युवकने दर्शकोंके देखते देखते स्मृतिके बलसे उन सब वाक्योंको क्रमपूर्वक सुना दिया । युवकको इस शक्तिको देखकर उपस्थित मंडली बहुत ही प्रसन्न हुई ।
इस युवाकी स्पर्शन इन्द्रिय और मन इन्द्रिय अलौकिक थी । इस परीक्षा के लिये अन्य अन्य प्रकारकी कोई बारह जिल्दें बतलाई गई और उन सबके नाम सुना दिए गए। इसके आंखों पर पट्टी बांधकर इसके हाथों पर जो जो पुस्तकें रखो गई, उन्हें हाथोंसे टटोलकर इस युवक ने सब पुस्तकों के नाम बता दिए। डा० पिटर्सनने इस युवकको इस प्रकार आश्चयपूर्ण स्मरणशक्ति और मानसिक शक्तिका विकास देखकर बहुत बहुत धन्यवाद दिया और समाजकी ओर से सुवर्ण पदक और साक्षात् सरस्वतीकी पदवी प्रदान की गई ।
उस समय चाल्स सारजंट बम्बई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे । वे श्रीमद्जीकी इस शक्ति बहुत ही प्रभावित हुए। सुना जाता है कि सारजंट महोदयने श्रीमद्जीसे इंग्लैंड चलनेका आग्रह किया था, परन्तु वे कार्तिसे दूर रहने के कारण चाल्स महाशय की इच्छा के अनुकूल न हुए अर्थात् इंग्लैंड न गए ।”
इसके अतिरिक्त बम्बई समाचार आदि अखबारों में भी इनके शतावधान के समाचार प्रकाशित हुए थे। बाद में शतावधानक प्रयोगोंको आत्मचिन्तनमें अन्तरायरूप मानकर उनका करना बन्द कर दिया था ! इससे सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि वे कीर्ति आदिसे
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