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( ७ ) इस पर से स्पष्ट ज्ञात होता है कि वे एक अति संस्कारी आत्मा थे। बड़े बड़े विद्वान् भी जिस मात्मा की ओर लक्ष्य नहीं देते उसी आत्माकी ओर श्रीमद्जीका बाल्याकालसे लक्ष्य तीव्र था। आत्माके अमरत्व तथा क्षणिकत्वके विचार भी कुछ कम नहीं किये थे । कुलश्रद्धासे जैन धर्मको अंगीकार नहीं किया था, लेकिन अपने अनुभव के बलपर उसे सत्य सिद्ध करके अपनाया था । जैन धर्मके सत्य सिद्धान्तोंको श्रीमद्जीने अपने जीवनमें उतारा था और मुमुक्षुओंको भी तदनुरूप बनानेका बोध देते थे। वर्तमान युगमें ऐसे महात्माका आविर्भाव समाजके लिये सौभाग्यकी बात है। ये मतमतान्तर में मध्यस्थ थे।
आपको जातिस्मरण ज्ञान था अर्थात् पूर्वभव जानते थे ! इस सम्बन्धमें मुमुक्षुभाई पदमशीभाईने एक बार उनसे पूछा था और उसका स्पष्टीकरण स्वयं उन्होंने अपने मुखसे किया था। पाठकोंकी जानकारीके लिये उसे यहाँ दे देना योग्य समझता हूं।
पदमशीभाईने पूछा- आपको जातिस्मरण-ज्ञान कब और कैसे हुआ ?"
श्रीमद्जीने उत्तर दिया-"जब मेरी उम्र सात वर्षकी थी, उस समय ववाणियामें अमीचन्द नामके एक सद्गृहस्थ रहते थे। वे परे लम्बे-चौड़े, सन्दर और गणवान थे। उनका मेरे ऊपर खूब प्रेम था । एक दिन सर्पके काट खानेसे उनका तुरन्त देहान्त हो गया। आसपासके मनुष्योंके मुखसे इस बातको सुनकर मैं अपने दादाके पास दौड़ा आया। मरण क्या चीज है ? इस बातको मैं नहीं जानता था, इसलिये मैंने दादा से कहा-दादा! अमीचन्द मर गए क्या ? मेरे दादाने उस समय विचारा कि यह बालक है, मरणकी बात करनेसे डर जायगा, इसलिए उन्होंने-जा भोजन करले, यों कहकर मेरी बातको टालनेका प्रयत्न किया। 'मरण' शब्द उस छोटे जीवनमें मैंने प्रथम बार ही सुना था । मरण क्या वस्तु है, यह जाननेकी मुझे तीव्र आकांक्षा थी। वारम्बार मैं पूर्वोक्त प्रश्न करता रहा । अन्तमें वे बोले-तेरा कहना सत्य है अर्थात् अमीचन्द मर गए हैं। मैंने आश्चर्यपूर्वक पूछा-मरण क्या चीज है ? दादाने कहा-शरीरमेंसे जीव निकल गया है और अब वह हलन-चलन आदि कुछ भी क्रिया नहीं कर सकता, खाना-पीना भी नहीं कर सकता। इसलिए अब इसको तालाबके समीपके श्मशानमें जला जायेंगे।
मैं थोड़ी देर इधर-उधर छिपा रहा । बादमें तालाब पर जा पहुंचा। तट पर दो शाखावाला एक बबूलका पेड़ था, उसपर चढ़कर मैं सामनेका सब दृश्य देने लगा। चिता जोरोंसे जल रही थी, बहुतसे आदमी उसको घेरकर बैठे हुए थे। यह सब देखकर मुझे विचार आयामनुष्यको जलानेमें कितनी क्रूरता ! यह सब क्या ? इत्यादि विचारोंसे आत्म-पट दूर हो गया।"
___ एक विद्वानने श्रीमद्जीको, पूर्व जन्मके सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करनेके लिए लिखा था। उसके उत्तर में उन्होंने जो कुछ लिखा था, वह निम्न प्रकार है
“कितने ही निर्णयोंसे मैं यह मानता हूं कि, इस कालमें भी कोई कोई महात्मा पहले भवको जातिस्मरण ज्ञानसे जान सकते हैं, और यह जानना कल्पित नहीं परन्तु सम्यक् (यथार्थ)
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