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[ तत्त्वज्ञान तरंगिणी कदापि नहीं मिल सकता, इसलिये जिन्होंने शुद्धचिद्रूपमें अपना मन लगाया वे मोक्ष गये, मन लगा रहे हैं वे जा रहे हैं और जो मन लगावेंगे वे अवश्य जावेंगे इसमें किसी प्रकारका संदेह नहीं ॥ १९ ॥
निश्चलोंऽगी यदा शुद्धचिद्रूपोऽहमिति स्मृतौ । तदैव भावमुक्तिः स्यात्त्रमेण द्रव्यमुक्तिभाग् ॥ २० ॥
अर्थः--जिस समय निश्चल मनसे यह स्मरण किया जाता है कि ' मैं शुद्धचिद्रूप हूँ', भाव-मोक्ष उसी समय हो जाता है और द्रव्य-मोक्ष क्रमशः होता चला जाता है ।
भावार्थ:-स्व और पर पदार्थोंका भेद विज्ञान होना भाव-मोक्ष है और शरीर आदिसे सर्वथा रहित हो सिद्धशिला पर आत्माका जा विराजना द्रव्यमोक्ष है । जिस समय संसारसे सर्वथा उदासीन हो ' मैं शुद्धचिद्रूप हूँ' ऐसा निश्चल स्मरण किया जाता है भाव-मोक्ष उसी समय हो जाता है और ज्यों ज्यों कर्मोका नाश, शरीर आदिसे रहितपना होता जाता है त्यों त्यों द्रव्य-मोक्ष होता चला जाता है ।। २० ।। इतिमुमुक्षुभट्टारक ज्ञानभूषणविरचितानां तत्त्वज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रपस्मरणनिश्चलता प्रतिपादको नाम षष्ठोऽध्यायः ॥६॥ इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूपण द्वारा निर्मित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रूपके स्मरण करनेकी निश्चलताको बतलानेवाला छठा अध्याय
समाप्त हुआ ॥ ६ ॥
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