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पाँचवां अध्याय ]
अर्थः-व्यक्त और अव्यक्त दोनों प्रकारके विकल्पोंसे मैं सदा भरा रहा, इसलिये आज तक मुझे शुद्धचिद्रूपके चितवन करनेका कभी भी अवकाश नहीं मिलों ।। २२ ।।
इति मुमुक्षुभट्टारकज्ञानभूषणविरचितायां तत्त्वज्ञान तरंगिण्णां ___ शुद्धचिद्रूपस्य पूर्वालब्धिप्रतिपादकः पंचमोऽध्यायः ॥ ५ ॥ इस प्रकार मोक्षाभिलापी भट्टारकज्ञानभूषण द्वारा निर्मित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रूपकी पूर्व में प्राप्ति न होनेका वर्णन करनेवाला पाँचवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥ ५ ॥
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