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________________ [ तत्त्वज्ञान तरंगिणी बीजं मोक्षतरोर्भवार्णवतरी दुःखाटवीपावको दुर्ग कर्मभियां विकल्परजसा वात्यागसां रोधनं ।। शस्त्रं मोहजये नृणामशुभतापर्यायरोगौषधं चिद्रपस्मरणं समस्ति च तपोविद्यागुणानां गृहं ॥ २ ॥ अर्थः-यह शुद्धचिद्रूपका स्मरण मोक्षरूपी वृक्षका कारण है । संसाररूपी समुद्रसे पार होनेके लिए नौका है । दुःखरूपी भयंकर बनके लिये दावानल है । कर्मोंसे भयभीत मनुष्योंके लिये सुरक्षित सुदृढ़ किला है । विकल्परूपी रजके उड़नेके लिये पवनका समह है । पापोंका रोकनेवाला है । मोहरूप सुभटके जीतनेके लिये शस्त्र है । नरक आदि अशुभ पर्यायरूपी रोगोंके नाश करनेके लिये उत्तम अव्यर्थ औषध है एवं तप, विद्या और अनेक गुणोंका घर है । भावार्थ:-जो मनुष्य शुद्धचिद्रूपका स्मरण करनेवाला है वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है, संसारको पार कर लेता है, समस्त दुःखोंको दूर कर देता है, कर्मोके भयसे रहित हो जाता है, विकल्प और पापोंका नाश कर देता है, मोहको जीत लेता है, नरक आदि पर्यायोंसे सर्वदाके लिये छूट जाता है और उनके तप, विद्या आदि गुणोंकी भी प्राप्ति कर लेता है । इसलिये शुद्धचिद्रूपका अवश्य स्मरण करना चाहिये ।। २ ।। क्षुत्तुट्रग्वातशीतातपजलवचसः शस्त्रराजादिभीभ्यो भार्यापुत्रारिनैः स्वानलनिगडगवाद्यश्वररैकंटकेभ्यः । संयोगायोगदंशिप्रपतनरजसो मानभंगादिकेभ्यो जातं दुःखं न विद्मः क्व च पटति नृणांशुद्धचिदपभाजां ॥३॥ अर्थः-संसारमें जीवोंको क्षुधा, तृषा, रोग, वात, ठंडी, उष्णता, जल, कठोर वचन, शस्त्र, राजा, स्त्री, पुत्र, शत्रु, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001638
Book TitleTattvagyan Tarangini
Original Sutra AuthorGyanbhushan Maharaj
AuthorGajadharlal Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size9 MB
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