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[ तत्त्वज्ञान तरंगिणी
( कारण ) है और निश्चयरत्नत्रय साध्य है तथा यह निश्चय रत्नत्रय मुनियोंका उत्तम भूषण है ।। २० ।।
रत्नत्रयं परं क्षेयं व्यवहारं च निश्वयं । निदानं शुद्धचिद्रपस्वरूपात्मोपलब्धये ॥ २१ ॥
अर्थ :- यह व्यवहार और निश्चय दोनों प्रकारका रत्नत्रय शुद्धचिद्रूपके स्वरूपको प्राप्ति में असाधारण कारण है ।। २१ ।। स्वशुद्धचिद्रूपपरोपलब्धिः कस्यापि रत्नत्रयमंतरेण । क्वचित्कदाचन्न च निश्वयो दृढोऽस्ति चित्ते मम सर्वदेव ॥ २२॥
अर्थ :- इस शुद्धचिद्रूपकी प्राप्ति बिना रत्नत्रयके आज तक कभी और किसी देश में नहीं हुई । सबको रत्नत्रयकी प्राप्ति के अनंतर ही शुद्धचिद्रूपका लाभ हुआ है यह मेरी आत्मामें दृढ़ रूपसे निश्चय है ।। २२ ।।
इति मुमुक्षु भट्टारक ज्ञानभूषण विरचितायां तत्रज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रपप्राप्त्यै रत्नत्रय प्रतिपादको द्वादशोऽध्यायः ।। १२ ।।
इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा निर्मित्त तत्त्वज्ञान तरंगिणी में शुद्धचिपकी प्राप्ति में असाधारण कारण रत्नत्रय है इस बातको बतलानेवाला बारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥ १२ ॥
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