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________________ ३२ [गा० ४६ द्रव्यस्वभावप्रकाशक तेषामपि स्वरूपव्याख्यानार्थ गाथाषट्केनाह अत्थिसहावे सत्ता असंतख्वा हु अण्णमण्णेण । सोयं इदि तं णिच्चा अणिच्चरूवा हु पज्जाया ॥६०॥ 'ऍक्को अजुदसहावो अणेकरूवा हु विविहभावस्था । भिण्णा हु वयणभेदे ण हु ते भिण्णा अभेदादो ॥६॥ आगे सामान्य स्वभावोंका स्वरूप छह गाथाओंके द्वारा कहते हैं सभी द्रव्य अपने अस्तित्व स्वभावमें स्थित होनेसे सत् हैं। तथा एक दूसरेकी अपेक्षा असत्स्वरूप हैं। 'यह वही है' इस प्रकारका बोध होनेसे नित्य हैं और पर्यायरूपसे अनित्य हैं ॥६॥ विशेषार्थ-सभी द्रव्य सत्स्वरूप है, इसलिए सभीमें अस्तित्व स्वभाव पाया जाता है। किन्तु सभी द्रव्य सर्वथा सत्स्वरूप नहीं हैं | अपने-अपने स्वरूपकी अपेक्षा सत् हैं, किन्तु परस्वरूपकी अपेक्षा सभी असत् जस घट घट रूपसे सत् है, पटरूपसे असत् है। पट भी पटरूपसे सत् है और घटरूपसे असत है। इसी तरह सभी पदार्थ स्वरूपसे सत् हैं और पररूपसे असत् हैं। अतः सभी पदार्थ जैसे अस्तिस्वभाववाले हैं,वैसे ही नास्तिस्वभाववाले भी हैं। ये दोनों स्वभाव मिलकर ही पदार्थकी प्रतिनियत सत्ताको कायम किये हुए हैं। इनमें-से यदि एक भी स्वभावको न माना जाये तो वस्तुव्यवस्था नहीं बन सकती। यदि द्रव्यको अस्तिस्वभाव न माना जाये तो वह गधेको सींगकी तरह असत हो जाये। यदि अस्तिस्वभाव मानकर भी उसमें नास्तिस्वभाव न माना जाय तो एकका दूसरे में अभाव न होनेसे सब पदार्थ मिलकर एक हो जायें। यद्यपि प्रत्येक पदार्थ परिवर्तनशील है, उसमें प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है, फिर भी उस परिणमनमें ऐसा एकत्व रहता है कि उसे देखकर हम कहते हैं कि यह वही है। तत्त्वार्थसूत्रके 'तद्भावाव्ययं नित्यम्' । (५।३१) सूत्रको व्याख्या करते हुए पूज्यपाद स्वामीने लिखा है-जिस रूपसे वस्तुको पहले देखा था,उसी रूपमें पुनः देखनेपर 'यह वही हैं। इस प्रकारका ज्ञान होता है। यदि पर्वदष्ट रूपसे वर्तमान रूपमें अत्यन्त विरोध हो या उसके स्थानमें नयी ही वस्तु उत्पन्न हो गयी हो तो 'यह वही है'- इस प्रकारका स्मरण नहीं हो सकता । और उसके न होनेसे जितना लोकव्यवहार है वह सब गड़बड़ा जायेगा । इसलिए प्रत्यभिज्ञानमें कारण जो एकरूपता है उसका नष्ट न होना ही नित्यता है सर्वथा नित्य तो कुछ भी नहीं है। इसीसे वस्तु नित्य स्वभाव भी है और प्रतिक्षणमें बदलनेवाली पर्यायकी दृष्टिसे अनित्य स्वभाव है। इस प्रकार अस्तिस्वभाव, नास्तिस्वभाव, नित्यस्वभाव और अनित्यस्वभाव ये चारों सामान्य स्वभाव सब द्रव्योंमें पाये जाते हैं। अयुतस्वभाव होनेसे प्रत्येक द्रव्य एक स्वभाववाला है। अनेक स्वभाववाला होनेसे प्रत्येक द्रव्य अनेक स्वभाववाला है। वचन भेदसे भिन्न स्वभाववाला है और अभेदरूप होनेसे अभिन्न स्वभाववाला है ॥६॥ विशेषार्थ-द्रव्यमें अनेक स्वभाव रहते हैं. किन्तु वे स्वभाव कभी भी उस द्रव्यसे पृथक् नहीं होते। अत: जहाँ स्वभावोंके अनेक होनेसे प्रत्येक द्रव्य अनेक स्वभाववाला है ,वहाँ स्वभावोंके अखण्ड एक रूप होनेसे प्रत्येक द्रव्य एक स्वभाववाला भी है। अर्थात् वे अनेक स्वभाव उस द्रव्यकी एकरूपता और अखण्डतामें बाधक नहीं है बल्कि द्रव्यकी एकता और अखण्डताके कारण वे अनेक स्वभाव भी एकरूप और अखण्ड हो रहे हैं, अतः द्रव्य एक स्वभाव है । वचनभेदसे द्रव्यमें भिन्नताको प्रतीति होती है, तथा जीव ज्ञान,दर्शन, चैतन्य १. 'स्वभावलाभादच्यतत्वादस्तिस्वभावः । पररूपेणाभावान्नास्तिस्वभावः । निजनिजनानापर्यायेष तदेवेदमिदमिति द्रव्यस्योपलम्भान्नित्यस्वभावः । तस्याप्यनेकपर्यायपरिणामित्वादनित्यस्वभावः ।'-आलाप० । २. 'स्वभावानामेकाधारत्वादेकस्वभावः । एकस्याप्यनेकस्वभावोपलम्भादनेकस्वभावः । गुणगुण्यादिसंज्ञाभेदाद् भेदस्वभावः, संज्ञासंख्यालक्षणप्रयोजनानि । गुणगुण्यायेकस्वभावादभेदस्वभावः।'-आलाप० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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