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________________ द्रव्यस्वभावप्रकाशक [गा० १७ लक्षणोंमें केवल दृष्टिभेद है, अभिप्रायमें भेद नहीं है। गुण द्रव्यमें सदा विद्यमान रहते हैं,अतः जब हम कहते हैं कि द्रव्य गुणमय है तो उसका अर्थ होता है कि वह ध्रौव्यमय है। और पर्याय एक उत्पन्न होती है तो एक नष्ट होती है, अतः पर्याय उत्पादविनाशशील है। इसलिए जब हम कहते हैं कि द्रव्य पर्यायवाला है तो उसका मतलब होता है वह उत्पादविनाशशील है। अतः द्रव्यको चाहे गुणपर्यायवाला कहो,चाहे उत्पादव्यय-ध्रौव्यमय कहो, दोनोंका एक ही अभिप्राय होता है। यह ऊपर कहा है कि द्रव्य गुणमय है। अतः जब द्रव्य गुणमय है और द्रव्य तथा गुणको पृथक् सत्ता नहीं है तो द्रव्य में परिणमन होनेसे गुणोंमें भी परिणमन होना स्वाभाविक है और गुणोंमें परिणमन होनेसे द्रव्यमें भी परिणमन होना स्वाभाविक है। इसीसे जिनागममें द्रव्यके विकारको भी पर्याय कहा है और गुणोंके विकारको भी पर्याय कहा है। अतः पर्यायके भी दो भेद हो गये है-द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय । अनेक द्रव्योंमें ऐक्यका बोध करानेवाली पर्यायको द्रव्यपर्याय कहते हैं। उसके भी दो प्रकार हैं-सजातीय और विजातीय । जैसे अनेक पुद्गलोंके मेलसे जो घट,पट आदि स्कन्ध बनते हैं वह समानजातीय द्रव्यपर्याय हैं और जीव तथा पदगलके मेलसे जो मनुष्य, पश आदि पर्याय बनती है वह असमानजातीय द्रव्यपर्याय है। गणपर्यायके भी दो भेद हैं-स्वभावपर्याय और विभावपर्याय। इनका कथन आगे स्वयं ग्रन्थकारने किया है। यहाँ समझनेकी बात यह है कि एक द्रव्यसे दूसरा द्रव्य नहीं बनता। सभी द्रव्य स्वभाव सिद्ध हैं, क्योंकि वे अनादि,अनन्त हैं। जो सादि सान्त होता है उसे अपनी उत्पत्तिके लिए अन्य साधनोंकी अपेक्षा करना पड़ती है। किन्तु द्रव्यका मूल साधन गुणपर्यायात्मक अपना स्वभाव है और वह स्वतः सिद्ध है. उसे बनानेके लिए किसी अन्य साधनकी अपेक्षा नहीं है । द्रव्योंसे जो कुछ बनता है वह अन्य द्रव्य नहीं है, किन्तु पर्याय है। जैसे घट-पट या मनुष्य आदि । वह सब अनित्य होती हैं। द्रव्य तो त्रिकालवर्ती होता है उसका कभी विनाश नहीं होता । वह सदा अपने स्वभावमें स्थित रहता है। उसका स्वभाव है- उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यकी एकता रूप परिणाम । उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यका परस्परमें अविनाभाव है। उत्पाद व्ययके बिना नहीं होता, व्यय उत्पादके बिना नहीं होता, उत्पाद, व्यय ध्रौव्यके बिना नहीं होते और ध्रौव्य उत्पाद-व्ययके बिना नहीं होता। अतः जो उत्पत्ति है वही विनाश है, जो विनाश है वही उत्पत्ति है, जो उत्पत्ति-विनाश है वही ध्रौव्य है और जो ध्रौव्य है वही उत्पत्ति विनाश है। जैसे-जो घटकी उत्पत्ति है वही मिट्टीके पिण्डका विनाश है, जो मिट्टीके पिण्डका विनाश है वही घटका उत्पाद है । और जो घटकी उत्पत्ति तथा मिट्टीके पिण्डका विनाश है वही मिट्टीका ध्रौव्य है। और जो मिट्टीका ध्रौव्य है वही घटका उत्पाद और पिण्डाकारका विनाश है। यदि ऐसा नहीं मानेंगे, तो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य सब अलग-अलग हो जायेंगे। और ऐसा होने पर यदि हम पिण्डाकारका विनाश हुए बिना केवल घटको उत्पन्न करना चाहेंगे तो घट पैदा नहीं हो सकेगा, या फिर असत्की उत्पत्ति माननी पड़ेगी। और जैसे घट उत्पन्न नहीं होगा, वैसे ही सभी पदार्थ उत्पन्न नहीं होंगे। यदि असतकी उत्पत्ति मानोगे तो गधेके सींग जैसी असम्भव वस्तुएँ भी पैदा हो जायेंगी। इसी तरह केवल विनाश मानने पर मिट्टीके पिण्डाकारका विनाश नहीं होगा यदि विनाश होगा तो सत्का सर्वथा विनाश हो जायेगा। क्योंकि घटके बननेसे मिट्टीके पिण्डका विनाश होता है और मिट्टीके पिण्डका विनाश होनेसे घट मट्टी दोनों अवस्थाओंमें वर्तमान रहती है। इस तरह तीनों परस्परमें अविनाभावी हैं किन्तु आप तो ऐसा न मानकर तीनोंमें-से केवल एकको मानते हैं। मगर शेष दोके बिना एक भी नहीं बनता अतः जैनदर्शनमें द्रव्यको उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप माना है। ये उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य पर्यायके होते हैं और पर्याय द्रव्यकी होती हैं, अतः उन्हें द्रव्यका कहा जाता है। यदि द्रव्यका ही उत्पाद, द्रव्यका ही व्यय और द्रव्यका ही ध्रौव्य माना जाये तो सब गड़बड़ा जायेगा। मिट्टी ही उत्पन्न हो, मिट्टी ही नष्ट हो और मिट्टी ही ध्रुव रहे; सम्भव है। हाँ, मिट्टीकी पिण्डपर्याय नष्ट होती है, घटपर्याय उत्पन्न होती है, मिट्टीपना स्थिर रहता है। अत: उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य पर्यायमें होते हैं और पर्याय द्रव्यमें होती हैं, इसलिए ये तीनों मिलकर एक द्रव्य कहे जाते हैं। इस तरह द्रव्य पर्यायवाला है। जैसे द्रव्यके बिना पर्याय नहीं, वैसे ही पर्यायके बिना द्रव्य नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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