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________________ -१७] नयचक्र चेतनादिगुणानां पुनरुक्तदोषपरिहारमाह चेदणमचेदणा तह मुत्तममुत्तावि चरिम जे भणिया। सामण्णं सजाईणं ते वि विसेसा विजाईणं ॥१६॥ इति गुणाधिकारः। अथ पर्यायस्य लक्षणं भेदं च दर्शयति सामण्णविसेसा वि य जे थक्का एयदवियमासॅज्ज । परिणाम अह वियारं ताणं तं पज्जयं दुविहं ॥१७॥ मूर्तत्व और अचेतनत्व ये छह विशेष गुण हैं। धर्मद्रव्यमें गतिहेतुत्व, अमूर्तत्व और अचेतनत्व ये तीन विशेष गुण है । अधर्मद्रव्यमें स्थितिहेतुत्व, अमूर्तत्व और अचेतनत्व ये तीन विशेष गुण हैं। आकाश द्रव्यमें अवगाहहेतुत्व, अमूर्तत्व, अचेतनत्व ये तीन विशेष गुण हैं। कालद्रव्यमें वर्तनाहेतुत्व, अमूर्तत्व, अचेतनत्व ये तीन विशेष गुण हैं। चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व इन गुणोंको सामान्य गुणोंमें भी गिनाया है और विशेष गुणोंमें भी गिनाया है । इसका कारण आगे ग्रन्थकार स्वयं बतलाते है_____ अन्तमें जो चेतन, अचेतन, मूर्तत्व और अमूर्तत्व गुण कहे हैं, वे सजातिको अपेक्षा सामान्य गुण हैं और विजातिको अपेक्षा विशेष गुण हैं ।। १६ ।। अर्थात् चेतनत्व गुण जीवमें ही पाया जाता है,किन्तु जीवद्रव्य तो अनन्त हैं और उन सभीमें चेतनत्व गुण पाया जाता है;इस अपेक्षासे वह सामान्य गुण है | किन्तु अचेतन द्रव्योंकी अपेक्षा वही विशेष गुण है । अचेतनत्व गुण पांचों अचेतन द्रव्योंमें पाया जाता है, इसलिए वह सामान्य गुण है। किन्तु चेतन जीवमें न पाया जानेसे वही विशेष गुण हो जाता है। मूर्तत्व गुण केवल पुद्गलद्रव्योंमें ही पाया जाता है और पुद्गलद्रव्य तो जीवोंसे भी अनन्तगुणे हैं । इस अपेक्षा वह सामान्य गुण है; किन्तु अमूर्त द्रव्योंमें न पाया जानेसे वही विशेष गुण हो जाता है। अमूर्तत्व गुण पुद्गलके सिवाय शेष सभी द्रव्योंमें पाया जाता है, अतः वह सामान्य गुण है । किन्तु पुद्गलद्रव्यमें न पाया जानेसे वही विशेष गुण है । इसलिए इन चार गुणोंकी गणना सामान्य और विशेष गुणोंमें की गयी है। गुणाधिकार समाप्त होता है। आगे पर्यायके लक्षण और भेद बतलाते हैं प्रत्येक द्रव्यमें जो सामान्य और विशेष गुण वर्तमान हैं, उनके परिणमन या विकारको पर्याय कहते हैं । वह पर्याय दो प्रकारको है ॥ १७ ॥ विशेषार्थ-कुन्दकुन्दस्वामीने प्रवचनसारके ज्ञेयाधिकारको प्रारम्भ करते हुए कहा है कि जितने ज्ञेय पदार्थ हैं, वे सब द्रव्यरूप हैं और द्रव्य गुणमय हैं तथा उनमें पर्याय होती है । द्रव्यके दो लक्षण जिनागममें कहे हैं जो गुण पर्यायवाला है वह द्रव्य है और जो उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप है,वह द्रव्य है। इन दोनों १. सामान्यगुणेषु विशेषगुणेषु च पाठात् पौनरुक्त्यम् । २. 'अन्तस्थाश्चत्वारो गुणाः स्वजात्यपेक्षया सामान्यगणाः, विजात्यपेक्षया त एव विशेषगुणाः । आलाप। ३. लक्षणभेदी अ. क०। ४. दविय एयमा-अ. क० ज०म०। ५. उक्तं च..."दब्ववियारो य पज्जओ भणिदो,'–सर्वार्थसि०, ५१३८ । 'गुणविकारा पर्यायाः-आलाप। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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