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द्रव्यस्वभावप्रकाशक
गुणस्य स्वरूपं भेदं च निरूपयति
दव्वाणं सहभूदा सामण्णविसेसदो गुणा' णेया । सव्वेंस सामण्णा दह भणिया सोलस विसेसा ॥११॥
दशसामान्यगुणानां नामानि आह—
अत्थित्तं वत्थुत्तं दव्वत्त पमेयत्त अगुरुलहूगत्तं । देसत्त चेदणिदरं मुत्तममुत्तं वियाह ॥१२॥
एकान्तवादका भी विनाश नहीं हो सकता । द्रव्यका यथार्थ स्वरूप न जाननेके कारण ही कोई उसे नित्य ही कहता है, तो कई उसे अनित्य ही कहता है। कोई सर्वथा एक ही मानता है, तो कोई सर्वथा अनेक ही मानता है । कोई द्रव्यसे गुणकी सत्ता सर्वथा भिन्न ही मानता है, तो कोई सर्वथा अभिन्न ही मानता है । इस तरह द्रव्यके स्वरूपके विषयमें नाना एकान्तवाद फैले हुए हैं । जब तक द्रव्यका यथार्थ स्वरूप नहीं जाना जाता, तब तक एकान्तवाद नष्ट नहीं हो सकते । और एकान्तवादोंके नष्ट हुए बिना दुराग्रहोंसे मुक्ति नहीं मिल सकती, और दुराग्रहोंसे छूटे बिना सम्यक्त्वकी प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए सबसे प्रथम द्रव्य, गुण और पर्यायका स्वरूप जानना आवश्यक हैं ।
[ गा० ११
सबसे प्रथम गुणका स्वरूप और भेद बतलाते हैं
जो द्रव्य सहभावी हों उन्हें गुण कहते हैं । वे गुण दो प्रकार के होते हैं - एक सामान्य गुण और एक विशेष गुण । जो सब द्रव्यों में पाये जायें, ऐसे सामान्य गुण दस कहे हैं और विशेष गुण सोलह कहे हैं ।। ११ ।।
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विशेषार्थ - गुण द्रव्यसे भिन्न नहीं हैं, क्योंकि न गुणसे द्रव्यका अस्तित्व भिन्न है और न द्रव्यसे गुणका अस्तित्व भिन्न है अतः दोनों में एकद्रव्यपना है । इसी तरह द्रव्य और गुणके प्रदेश भिन्न नहीं हैं, अतः दोनोंमें एक क्षेत्रपना है । दोनों सदा सहभावी हैं इसलिए दोनों में एक कालपना है । और दोनोंका एक स्वभाव होनेसे दोनोंमें भावकी अपेक्षा भी एकत्व है । गुणोंके समुदायको द्रव्य कहते हैं । अतः गुण द्रव्यके सहभावी होते हैं और पर्याय क्रमभावी होती हैं । एक द्रव्यके सब गुण एक साथ रहते हैं किन्तु पर्याय एकके बाद एक क्रमसे होती है । यही दोनोंमें अन्तर 1 दो प्रकार के होते हैं । जो गुण सब द्रव्योंमें पाये जायें उन्हें सामान्य गुण कहते हैं वे दस हैं । जो प्रत्येक द्रव्यके विशिष्ट गुण होते हैं उन्हें विशेष गुण कहते हैं वे १६ हैं ।
प्रथम, दस सामान्य गुणोंके नाम बतलाते हैं
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशवत्त्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व ये दस सामान्य गुण जानो ॥ १२ ॥
विशेषार्थ – अकलंकदेवने अपने "तस्वार्थवार्तिकमैं (२७) पारिणामिक भावोंका कथन करते हुए अस्तित्व, अन्यत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, पर्यायवत्त्व, असर्वगतत्व, अनादिसन्ततिबन्धनबद्धत्व, प्रदेशवत्त्व, अरूपत्व, नित्यत्व आदिको पारिणामिक भाव बतलाया है और यह भी लिखा है कि ये जीवके सिवाय अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते हैं । अतः ये साधारण या सामान्य हैं । जैसे अस्तित्व सभी द्रव्योंमें पाया जाता है । एक द्रव्य
१. 'अन्वयिनो गुणा व्यतिरेकिणः पर्यायाः । - सर्वार्थसि० । 'गुणपर्यायवद् द्रव्यं ते सहक्रमवृत्तयः । विज्ञानव्यक्तिशक्त्याद्याः भेदाभेदौ रसादिवत् ॥ ११५ ॥ ' - 'सहवृत्तयो गुणाः क्रमवृत्तयः पर्यायाः । न्यायविनि०, मा० १ । 'गुणाः सहभाविनो जीवस्य ज्ञानादयः । - सिद्धिवि० टी०, पृ० २१३ । 'गुणा विस्तारविशेषाः ते द्विविधाः सामान्यविशेषात्मकत्वात् । प्रवचनसा० गा० २|३| टी० आत्म० । २. वियाहि अ० क० । ‘अस्तित्वान्यत्व-कर्तृत्व-भोक्तृत्व-पर्यायवत्वा सर्वगतत्वानादिसंततिबन्धनबद्धत्वप्रदेशवत्त्वारूपत्व-नित्यत्वादिसमुच्चयार्थश्चशब्दः । तवा० वा०, २|७|१२| 'तत्रास्तित्वं नास्तित्वमेकत्व -
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