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________________ ४८ नैगम नयका स्वरूप नैगम नयके विषयमें आशंका और उसका परिहार नैगमनय और प्रमाणमें अन्तर नैगमनयका अन्तर्भाव संग्रह और व्यवहार में नहीं अर्थपर्याय नैगमका स्वरूप अर्थपर्याय नैगमाभासका उदाहरण व्यंजन पर्याय नैगमनयका स्वरूप व्यंजनपर्याय नैगमाभासका स्वरूप अर्थव्यंजन पर्याय नैगमका स्वरूप अर्थव्यंजन पर्याय नैगमाभासका स्वरूप शुद्धद्रव्य नैगमका स्वरूप अशुद्धद्रव्य नैगमका स्वरूप अशुद्धद्रव्य नैगमाभासका स्वरूप शुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमका उदाहरण शुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमाभासका स्वरूप अशुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमका स्वरूप अशुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमाभासका स्वरूप शुद्धद्रव्यव्यंजन पर्याय नैगमनयका उदाहरण अशुद्धद्रव्यव्यंजन पर्याय नैगमनयका स्वरूप संग्रहन का स्वरूप संग्रह के दो भेद परसंग्रह नयाभासका स्वरूप अपर संग्रहनयका स्वरूप संग्रहाभासका स्वरूप नयचक्र Jain Education International २३८ ऋजुसूत्र आदिमें भी नहीं अतः नय सात ही हैं किन्हीं आचार्योंने नैगमके तीन भेद करके नौ नय भी कहे हैं २४१ पर्याय नैगमके तीन भेद, द्रव्य नैगमके दो भेद, द्रव्यपर्याय नैगमके चार भेद २३९ २४० २४० २४१ २४१ २४१ २४१ २४२ २४२ २४२ २४२ २४३ २४३ २४३ २४३ २४४ २४४ २४४ २४४ २४४ २४५ २४५ २४६ २४६ २४७ २४७ व्यवहारनयका कथन व्यवहाराभासका स्वरूप ऋजुसूत्रनयका स्वरूप ऋजुसूत्रनयाभासका स्वरूप शब्दनयका स्वरूप समभिरूढनयका स्वरूप एवंभूतनका स्वरूप सापेक्षनय सम्यक्, निरपेक्ष मिथ्या सातनयों का अर्थनय और शब्दनय में विभाजन सातनयों में अल्पविषय और बहुविषयवाले नय संग्रनयसे नैगमका विषय बहुत है संग्रनयसे व्यवहारका विषय अल्प व्यवहारनयसे ऋजुसूत्रका विषय अल्प ऋजुसूत्रनयसे शब्दनयका विषय अल्प शब्दनय से समभिरूढ़नयका विषय अल्प समभिरूदनयसे एवंभूतनयका विषय अल्प नय वाक्यकी प्रवृत्ति प्रत्येक नयके भेद में सप्तभंगीका अवतरण सप्तभंगीका कथन अनेकान्त में अनेकान्त परिशिष्ट ३ द्र० स्व० नयचक्रमें उद्धृत पद्यानुक्रमणी परिशिष्ट ४ २५७ २५८ २६५ अवक्तव्यभंग की सिद्धि २६६ नयोंके तीन भेद - शब्दनय, अर्थनय और ज्ञाननय २६७ वस्तु में नयोंकी प्रवृत्तिका प्रकार २६७ नयचर्चाका उपसंहार २६८ नयचक्रगाथानुक्रमणी परिशिष्ट ५ नयविवरण श्लोकानुक्रमणी For Private & Personal Use Only २४७ २४८ २४८ २४९ २५० २५२ २५३ २५४ २५४ २५४ २५४ २५५ २५५ २५९ २५५ २५६ २५६ २६९ २७०-७४ २७५-७६ www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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