SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५ १५३ विषय-सूची कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशद्ध पर्यायाथिक १११ निक्षेपादिके जाननेका प्रयोजन १३९ भावि नैगमनय १११ व्यवहार और परमार्थसे रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग, भूत नैगमनय ११२ शुभ-अशुभ भाव नहीं १४० वर्तमान नैगमनय ११२ व्यवहारमार्गमें विवाद करनेवालोंका संग्रहनय ११२ निराकरण १४२-१४४ व्यवहारनयका लक्षण और भेद ११३ व्यवहार निश्चयका साधक १४५ ऋजुसूत्रनयका स्वरूप और भेद ११३ युक्तिके द्वारा समर्थन १४६ शब्दनयका लक्षण ११४ व्यवहारी जीवको कर्तत्वका प्रसंग आनेसे मुक्तिसमभिरूढनयका लक्षण ११४ की प्राप्ति कैसे? इस आशंकाका परिहार १४७ एवंभूतनयका स्वरूप ११५ शुभ अशुभ कर्मोका तथा संसारका कारण १४८ नैगमादिनयोंमें द्रव्याथिक और पर्यायाथिक तथा मोहनीयकर्मके भेद और उनका कार्य १४९ शब्दनय और अर्थनयका भेद प्रत्यय और उनके भेद १५० शुद्धसद्भूत व्यवहारनयका स्वरूप मिध्यादष्टि और अज्ञानका स्वरूप १५१ असद्भूत व्यवहारनयका लक्षण और भेद ११७ अविरतिके भेद १५२ तथा भेदोंका स्वरूप ११७-११९ कषाय और योगके भेद १५३ व्यवहार और निश्चयसे बन्ध और मोक्षके शुभ-अशुभ राग, मोहके कार्य १२१-१२३ शुभराग १५४ उपचरितासद्भूत व्यवहारनयके भेदोंका शुभ-अशुभ भावका हेतु तथा उनसे बन्ध १५४ उदाहरणपूर्वक स्पष्टीकरण १२४ कर्मके कारणोंको हटानेका उपदेश १५५ वस्तुके स्वभावोंमें अस्तित्वस्वभाव हो प्रधान, सम्यक्त्वकी उत्पत्तिमें अभ्यन्तर हेतु १५६ वही प्रमाण और नयका विषय १२५ सम्यक्त्वको उत्पत्ति में बाह्य हेतु १५७ युक्तियुक्त अर्थ ही सम्यक्त्वका कारण १२६ मोहका क्षय कौन करता है १५७ सापेक्ष सम्यक् निरपेक्ष मिथ्या सम्यग्दर्शनके भेद और स्वरूप १५८ सापेक्षता और निरपेक्षताका स्पष्टीकरण १२७ नया नयदृष्टिसे सम्यक्त्वके तीन प्रकार १५८ स्याद्वादका स्वरूप व्यवहार रत्नत्रय १५९ प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभंगी १२८ व्यवहार रत्नत्रयके ग्रहणका उपाय दुर्नयभंगी निश्चय रत्नत्रयका स्वरूप १५९ सप्तभंगीमें भंग रचनाका उपाय १३० सम्यग्ज्ञानका स्वरूप ६६२-१६३ सापेक्षता साधक सम्बन्ध और युक्तिका स्वरूप १३१ व्यवहारके द्वारा निश्चयरूप साध्यका साधनक्रम १६४ तत्त्वमें हेय और उपादेयका विचार १३२ चारित्रका स्वामी १६४ व्यवहारनय और निश्चयनयका सामान्य लक्षण १३२ सराग श्रमण और वीतराग श्रमण १६५ विषयीकी प्रधानतासे विषयको ध्येयपना १३३ श्रद्धानादि करते हुए भी मिथ्यादृष्टि १६६ युक्ति और अनुभवका काल सराग चारित्रका स्वरूप और भेद १६७ कथंचित् एकान्त में हो तत्त्वका निर्णय साधुके २८ मूलगुण १६७ निक्षेपका स्वरूप और भेद १३६ साधुके उत्तरगुण १६८ नामनिक्षेपका उदाहरण १३७ समान आचारवालेके साथ ही सामाचारी १७० स्थापना निक्षेपका उदाहरण १३७ विस्तारसे जाननेके लिए प्रवचनसार देखनेका द्रव्यनिक्षेप भेद-प्रभेद आग्रह १७१ भावनिक्षेपका उदाहरण १३८ शुभोपयोगसे दुःखका प्रतीकार किन्तु सुखकी निक्षेपोंमें नययोजना प्राप्ति नहीं १७२ ل ~ १२७ ~ १५९ س ~ १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy