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________________ २४४ परिशिष्ट शुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमोऽस्ति परो यथा । सत्सुखं क्षणिकं सिद्धं संसारेऽस्मिन्नितीरणम् ॥५५॥ सत्त्वं सुखार्थपर्यायाद्भिन्नमेवेति संमतिः । दुर्नीतिः स्यात्स बाधत्वादिति नीतिविदो विदुः ॥५६॥ क्षणमेकं सुखी जीवो विषयीति विनिश्चयः । विनिर्दिष्टोऽर्थ पर्यायाशुद्धद्रव्यनेगमः ॥५७॥ सुखजीव भिदोक्तिस्तु सर्वथा मानबाधिता । दुर्नीतिरेव बोद्धव्या शुद्धबोधैरसंशयम् ॥५८॥ गोचरी कुरुते शुद्धद्रव्यव्यञ्जनपर्ययो । नैगमोsयो यथा सच्चित्सामान्यमिति निर्णयः ॥ ५९ ॥ द्रव्यका लक्षण गुणपर्यायवत्त्व है । मगर वे गुण और पर्याय द्रव्यसे सर्वथा भिन्न नहीं हैं । यदि उन्हें सर्वथा भिन्न माना जायेगा तो दोनोंका ही सत्त्व नहीं बनेगा; क्योंकि गुणोंके बिना द्रव्य नहीं बनता और द्रव्य के बिना निराधार होनेसे गुणोंका अभाव प्राप्त होता है; जैसे अग्निके बिना औष्ण्य नहीं रहता और ओष्ण्यके बिना अग्नि नहीं रहती। इसी तरह आत्माके बिना ज्ञानादि गुण नहीं रहते और ज्ञानादि गुणोंके बिना आत्मा नहीं रहता । अतः जो नय उनके भेदको मानता है वह नयाभास है । आगे शुद्धद्रव्यार्थ पर्यायनैगमनयका उदाहरण देते हैं इस संसार में सत्स्वरूप सुख क्षणिक सिद्ध है ऐसा कहना शुद्ध द्रव्यार्थपर्याय नैगमनय है । ऊपरके दृष्टान्त में सुख अर्थपर्याय है । और उसका विशेषण 'सत्' द्रव्य है अतः यह नय द्रव्यको गौण रूपसे और विशेष्य अर्थपर्याय सुखको प्रधान रूपसे विषय करता है । --- आगे शुद्धद्रव्यार्थ पर्यायनैगमाभासको कहते हैं सुखस्वरूप अर्धपर्यायसे सत्व सर्वथा भिन ही है इस प्रकारका अभिप्राय दुर्नय है। क्योंकि सुख और सश्वको सर्वथा मिन माननेमें अनेक बाधाएँ आती हैं, ऐसा नयको जाननेवाले विद्वान् समझते हैं । और सबको सर्वथा मिल मानना शुद्धद्रव्य अर्थपर्याय नैगमामास है । अतः सुख आगे अशुद्धद्रव्यार्थ पर्यायनगमका स्वरूप कहते हैं- विषयी जीव एक क्षण तक सुखी है इस प्रकारका निश्चय करनेवाला अशुद्ध द्रव्य अर्थपर्याय गमनय कहा है । यहाँ सुख तो अर्थपर्याय है । और विषयी जीव अशुद्धद्रव्य है । यह नय अर्थपर्यायको गौण रूपसे और अशुद्धद्रव्यको मुख्यरूप से विषय करता 1 अशुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमाभासका स्वरूप कहते हैं सुख ओर जीवको सर्वथा भिन्न कहना तो प्रमाणसे बाधित है। अतः शुद्ध ज्ञानियोंके द्वारा उसे बिना किसी प्रकार के संशयके दुर्नय ही जानना चाहिए । अर्थात् सुख और जीवको सर्वथा भिन्न कहना अशुद्धद्रव्यार्थ पर्याय नैगमामास है । आगे शुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्याय नैगमनयका उदाहरण देते हैं तीसरा शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय नैगमनय शुद्धद्रव्य और व्यंजनपर्यायको विषय करता है। जैसे चिल्लामान्य सत्स्वरूप हैं यह निर्णय शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय नैगमनय है । यहाँ सत् तो शुद्ध द्रव्य है और चैतन्यपना व्यंजनपीय है । यह नय गौण - प्रधानरूपसे दोनोंको जानता है । १. शुद्धं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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