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________________ आलापपद्धति २२५ सकलवस्तुग्राहकं प्रमाणम् । प्रमीयते परिच्छिद्यते वस्तुतत्वं येन ज्ञानेन तत्प्रमाणम् । तद् द्वेधा सविकल्पेतरभेदात् । सविकल्पं मानसम् । तच्चतुर्विधं-मतिश्रुतावधि-मनःपर्ययरूपम् । निर्विकल्पं मनोरहितं केवलज्ञानम् । इति प्रमाणस्य व्युत्पत्तिः । प्रमाणेन वस्तुसंगृहीताथै कांशो'नयः, श्रुतविकल्पो वा, ज्ञातुरभिप्रायो वा नयः । नानास्वभावेभ्यो व्यावृत्य एकस्मिन् स्वभावे वस्तु नयति प्रापयतीति वा नयः । स द्वेधा सविकल्पनिर्विकल्पभेदात् । इति नयस्य व्युत्पत्तिः । प्रमाणनययोनिक्षेपणं-आरोपणं निक्षेपः । स नामस्थापनादिभेदेन चतुर्विधः । इति निक्षेपस्य व्युत्पत्तिः । . जो पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है वह प्रमाण है। जिसके द्वारा वस्तुतत्त्वको जाना जाता है उस ज्ञानको प्रमाण कहते हैं। वह दो प्रकारका है-एक सविकल्प और दूसरा निर्विकल्प । मनको सहायतासे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको सविकल्प कहते हैं। उसके चार भेद है-मतिज्ञान, ध्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान । जो ज्ञान मनकी सहायताके बिना केवल आत्मासे ही होता है वह निर्विकल्प केवलज्ञान है। इस प्रकार प्रमाणकी व्युत्पत्ति समाप्त हुई। प्रमाणके द्वारा गृहीत वस्तुके एक अंशको ग्रहण करनेका नाम नय है। अर्थात् प्रमाणसे वस्तुके सब धर्मोको ग्रहण करके ज्ञाता पुरुष अपने प्रयोजनके अनुसार उनमेंसे किसी एक धर्मकी मुख्यतासे वस्तुका कथन करता है यही नय है । इसीसे ज्ञाताके अभिप्रायको नय कहा है। श्रुतज्ञानके भेद नय हैं । इस तरह जो नाना स्वभावोंसे वस्तुको पृथक् करके एक स्वभावमें स्थापित करता है वह नय है । नयके भी दो भेद हैं-सविकल्प और निर्विकल्प। इस प्रकार नयकी व्युत्पत्ति हुई। प्रमाण और नयके निक्षेपण या आरोपणको निक्षेप कहते हैं। वह नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे चार प्रकारका है। विशेषार्थ-निक्षेपका अर्थ है-रखना। अर्थात् प्रयोजनवश नाम,स्थापना,द्रव्य और भावमें पदार्थके स्थापन करनेको निक्षेप कहते हैं। जिस पदार्थमें जो गुण नहीं है,उसकी उस नामसे कहना नामनिक्षेप है। जैसे किसी दरिद्रने अपने लड़केका नाम राजकुमार रखा है, अतः वह नामसे राजकुमार है। साकार अथवा निराकार पदार्थमें 'वह यह है' इस प्रकारको स्थापना करनेको स्थापनानिक्षेप कहते हैं। जैसे शतरंजके मोहरोंमें राजा आदि की स्थापना करना। आगामी परिणामको योग्यता रखनेवाले पदार्थको द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। जैसे राजाके पुत्रको राजा कहना। और वर्तमान पर्यायसे विशिष्ट द्रव्यको भावनिक्षेप कहते हैं। जैसे राज करते समय ही राजा कहना । इस प्रकार निक्षेपकी व्युत्पत्ति हुई १. 'प्रमाणप्रकाशितार्थविशेषप्ररूपको नयः'।-तत्त्वार्थवार्तिक ।।३३।१। 'प्रमाणपरिग्रहीतार्थेकदेशे वस्त्वध्यवसायो नयः । जयधवला मा० १, पृ० १९९ । २. 'श्रुतं पुनः स्वार्थं भवति परार्थं च । ज्ञानात्मक स्वार्थ वचनात्मकं परार्थम् । तद्विकल्पा नयाः' । सर्वार्थ. ११६ । ३. 'नयो ज्ञातुरभिप्रायः'-लघीयस्त्रय श्लो० ५२ । ४. प्राप्नोति अ. आ. क० ख० ग०। ५. -क्षेप आरो०-आ० मु० ।-योनिक्षपणं निक्षेपः अ. क० ख० ग० ज० । ६. नामस्थापना द्रव्यभावतस्तन्न्यासः ।-तत्त्वार्थसू० १।५ । २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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