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परिशिष्ट १ श्रीदेवसेनविरचिता आलापपद्धतिः
[हिन्दीटीका-सहिता]
गुणानां विस्तरं वक्ष्ये स्वभावानां तथैव च ।
पर्यायाणां विशेषेण नत्वा वीरं जिनेश्वरम् ॥१॥ आलापपद्धतिर्वचनरचनानुक्रमेण नयचक्रस्योपैरि उच्यते । सा च किमर्थम् । दन्यलक्षणसिद्ध्यर्थ स्वभावसिद्धयर्थ च । द्रव्याणि कानि । जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशकाल द्रव्याणि । सद् द्रव्यलक्षणम् । उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् । इति द्रव्याधिकारः ।
भगवान् महावीर जिनेश्वरको नमस्कार करके गुणों का तथा स्वभावों का और विशेषरूपसे पर्यायोंका विस्तारपूर्वक कथन करूँगा ॥१॥
इस ग्रन्थका नाम आलापपद्धति है। - आलापका अर्थ होता है-वचनरचना। बातचीत और पद्धतिका अर्थ है-परिपाटी। अर्थात् कथन करनेकी परम्परा या शैली। ग्रन्थकार'नयचक्र' ग्रन्थके आधारपर उसको रचना करनेको सूचना देते हैं।
शंका-उसकी रचना किस लिए करते हैं ?
समाधान-द्रव्यके लक्षणकी सिद्धिके लिए और स्वभावकी सिद्धि के लिए। अर्थात् द्रव्य और उनका स्वभाव बतलानेके लिए इस आलापपद्धतिकी रचना की जाती है।
शंका-द्रव्य कौन-कौन हैं ?
समाधान--जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह द्रव्य हैं। द्रव्यका लक्षण सत है। जो सत है वह द्रव्य है। और जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यसे युक्त है-वह सत् । इस प्रकार द्रव्याधिकार समाप्त हुआ।
. विशेषार्थ-द्रव्यका लक्षण सत्ता है और सत्ताका लक्षण है-उत्पाद, व्यय, ध्रीव्य । अतः उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य एक तरहसे द्रव्यका ही लक्षण है क्योंकि द्रव्यसे सत्ता और सत्तासे द्रव्य भिन्न नहीं है । द्रव्यमें प्रति समय पूर्वपर्यायका विनाश, उत्तर पर्यायकी उत्पत्ति होते हुए भी उसका स्वभाव न उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है,वही ध्रौव्य है। इस तरह द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यसे युक्त है। ये तीनों भाव द्रव्यसे भिन्न नहीं हैं. ये द्रव्यके स्वभावरूप है और एक ही समयमें तीनों होते हैं। जैसे कुम्हार जब मिट्टीसे घड़ा बनाता है,तो उस मिट्टीका पहला आकार नष्ट होता जाता है.नया आकार बनता जाता है और मिट्टी स्थायी रहती है। इसी तरह द्रव्यकी भी स्थिति है। द्रव्य छह हैं। हम इन्द्रियोंसे जो कुछ देखते हैं वह सब पुद्गल द्रव्य है । जो चेतन है वह जीव द्रव्य है। उन जीवों और पुद्गलोंके गमनमें सहायक धर्मद्रव्य है और ठहरने में सहायक अधर्मद्रव्य है। सब द्रव्योंको स्थान देनेवाला आकाश द्रव्य है और परिवर्तनमें सहायक कालद्रव्य है।
१. वचनग्रन्थ परिपाटी । २. नयचक्रं विलोक्य । ३. आलापपद्धतिः । ४. वस्तुस्वभावसिद्धयर्थम् । ५. तत्त्वार्थसूत्र ५।२९ । ६. तत्त्वार्थसूत्र ५।३० ।
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