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________________ नयचक्र इसको स्पष्ट करने के लिए एक दूसरा उदाहरण आचार्य अमृतचन्द्र ने (प्र.व.सा.गाथा १०७ की टीका में) दिया है जैसे एक मोती की माला का विश्लेषण हार, धागा और मोती तीन रूप में किया जाता है, वैसे ही एक द्रव्य का विश्लेषण द्रव्य, गुण और पर्याय के रूप में किया जाता है। जैसे एक मोती की माला को शुक्लगुण, शुक्लहार, शुक्लधागा, शुक्लमोती तीन रूप में विस्तारित किया जाता है, वैसे ही एक द्रव्य का सत्तागुण सतद्रव्य, सत्गुण, सत्पर्याय तीन रूप से विस्तारित किया जाता है। जैसे एक मोती की माला में जो शुक्लगुण है वह न हार है, न धागा है और न मोती है तथा जो हार, धागा और मोती है, वह शुक्लगुण नहीं है। इस प्रकार इनका जो परस्पर में अभाव है, वही तदभावरूप अतभाव है जो अन्यत्व का कारण है। इसी प्रकार एक द्रव्य में जो सत्तागुण है, वह द्रव्य नहीं है; न वह अन्य गुण है और न पर्याय है। तथा जो द्रव्य अन्य गुण और पर्याय है, वह सत्तागुण नहीं है। इस तरह इनका जो परस्पर में अभाव है, वही तद्भावरूप अतद्भाव है जो अन्यपने का कारण है। सारांश यह है कि एक द्रव्य में जो द्रव्य है वह गुण नहीं है, जो गुण है वह द्रव्य नहीं है। इस प्रकार द्रव्य का गुण रूप से न होना और गुण का द्रव्य रूप से न होना अतद्भाव है। इससे उनमें अन्यत्वरूप व्यवहार होता है। परन्तु द्रव्य का अभाव गुण है और गुण का अभाव द्रव्य है, इस प्रकार के अभाव का नाम अतद्भाव नहीं है। यदि ऐसा माना जाएगा, तो एक द्रव्य अनेक हो जाएगा या दोनों का ही अभाव होगा या बौद्ध सम्मत अपोहवाद का प्रसंग उपस्थित होगा। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है जैसे चेतन द्रव्य का अभाव अचेतन द्रव्य है और अचेतन द्रव्य का अभाव चेतन द्रव्य है, इस प्रकार उनमें अनेकता है। उसी प्रकार द्रव्य का अभाव गुण और गुण का अभाव द्रव्य मानने से द्रव्य में भी अनेकता का प्रसंग उपस्थित होगा अर्थात् जैसे चेतन और अचेतन दो स्वतन्त्र द्रव्य हैं, वैसे ही द्रव्य और गुण भी स्वतन्त्र हो जाएँगे। दूसरे दोष का स्पष्टीकरण इस प्रकार है-जैसे सुवर्ण का अभाव होने पर सुवर्णत्व का अभाव हो जाता है और सुवर्णत्व का अभाव होने पर सुवर्ण का अभाव हो जाता है, उसी प्रकार द्रव्य का अभाव होने पर गुण का भी अभाव हो जाएगा और गुण का अभाव होने पर द्रव्य का भी अभाव हो जाएगा; इस तरह दोनों का ही अभाव हो जाएगा। तीसरे दोष का स्पष्टीकरण इस प्रकार है-बौद्ध मतानुसार पटाभाव मात्र ही घट है और घटाभाव मात्र ही पट है-इस प्रकार दोनों अपोहरूप हैं; वस्तुसत् नहीं हैं। वैसे ही द्रव्याभाव मात्र गुण और गुणाभाव मात्र द्रव्य होगा। अतः अतद्भाव का उक्त लक्षण ही मान्य है। इस तरह द्रव्य का लक्षण सत्ता है। सत्ता गुण है और द्रव्य गुणी है। तथा गुण और गुणी में अभेद है। जैसे सुवर्ण से उसका गुण पीलापना और कुण्डलादि पर्याय भिन्न नहीं है, वैसे ही द्रव्य से भिन्न गुण और पर्याय नहीं है। इसी से जो गुण और पर्यायवाला है वह द्रव्य है; ऐसा भी द्रव्य का लक्षण कहा है। जैसे पुद्गल द्रव्य के बिना रूप, रस आदि गुण नहीं होते और रूप, रस आदि गुणों के बिना पुद्गल द्रव्य नहीं होता। इसी तरह द्रव्य के बिना गुण नहीं होते और गुण के बिना द्रव्य नहीं होता। अतः द्रव्य और गुण में कथंचित् भेद होने पर भी दोनों का एक ही अस्तित्व होने से वस्तुरूप से अभेद है। इसी तरह जैसे दूध, दही, घी, मक्खन आदि से रहित गोरस नहीं होता, वैसे ही पर्याय से रहित द्रव्य नहीं होता। और जैसे गोरस के बिना दूध, दही, घी, मक्खन आदि नहीं होते, वैसे ही द्रव्य के बिना पर्याय नहीं होती। अतः द्रव्य और पर्याय में कथंचित भेद होने पर भी दोनों का अस्तित्व एक होने से वस्तुरूप से दोनों अभिन्न हैं। यही बात आचार्य समन्तभद्र ने कही है द्रव्यपर्याययोरैक्यं तयोरव्यतिरेकतः। परिणामविशेषाच्च शक्तिमच्छक्तिभावतः ॥७१॥ संज्ञा संख्याविशेषाच्च स्वलक्षणविशेषतः। प्रयोजनादिभेदाच्च तन्नानात्वं न सर्वथा ॥७२॥ द्रव्य और पर्याय एक ही वस्तु रूप है, प्रतिभास भेद होने पर भी वह अभेद होने से है। जो प्रतिभास भेद होने पर भी अभिन्न होती है, वह एक ही वस्तु है; जैसे रूपादि द्रव्य। तथा दोनों का स्वभाव, परिणाम, संज्ञा, संख्या और प्रयोजन आदि भिन्न होने से दोनों में कथंचित् भेद है; सर्वथा नहीं। यथा-द्रव्य अनादि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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